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फ़रवरी २०१७ में लिखी रचनाएँ

१ फ़रवरी से २८ फ़रवरी २०१७ तक ------------------------------------------- क्रांतिमय सही स्वर **************** आदमी ने ही आदमी को बिगाड़ा है जिसे जैसा लगा वैसा उसे मोड़ा है उसे सीधा कर सकने के दावेदार कई एक भी नही जिस्ने सीधा कर छोड़ा है सीधा करनेवालों की कोशिशें बाहर बाहर पर मुडावट तो घटी है अंतस्थ के भीतर स्वयं के अंतस्थ में जो झाँक सका अपने से उसके ही भीतर बज पाया क्रांतिमय सही स्वर -अरुण दिल सुकून.. मन ख़ुराफ़ात ********************* खिडकी से बाहर केवल झांकना ही झांकना हो तो दिल में है सुकून ही सुकून पर अगर झांकती आँखों में भापने, जांचने, नापने, बूझने जैसी शैतानियत का अंजन लगा हो... तो कई खुराफातें सताने लगती हैं मन को दरअसल, दिल का मतलब ही है सुकून और मन का सिरफ ख़ुराफ़ात -अरुण वैज्ञानिक एवं ज्ञानिक ****************** अवास्तविकता से सत्य तक का सफ़र वास्तव से होकर गुज़रता है... वैज्ञानिक किसी वैज्ञानिक निचोड़ के साथ वास्तव पर ही ठहर जाता है ज्ञानिक को वास्तव में भी छुपी-अवास्तविकता के दर्शन होते रहते हैं और इसकारण उसका खोज-सफर तबतक ठहरता नही