14 April 2016

एक शेर
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पीठ पीछे जो हुआ....... वोही दिखे है सामने
असलियत जिस हाल में हो एक जैसी ही हुई
- अरुण
एक शेर
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खोजने को कुछ नही..........सब खुल्ले रख्खा  
खोज जिसकी भी करो.........स्व-पल्ले दिख्खा
- अरुण
एक शेर
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यह यहाँ अभी हुआ.......... वोही हमेशा हर तरफ
खोजते हो क्यों समय के चाक चढ़कर सब तरफ़
- अरुण
एक शेर
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अबतक तो जी रहे हो ढली ढलती जिंदगी
जाना न ……..जिंदगीकी हुआ करती जिंदगी
- अरुण
एक शेर
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नाटकों में, किरदार निभाये जाते हैं
जिंदगी में मगर निभा लिए जाते हैं
- अरुण
एक शेर
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मिची आँखों के सामने सपने, खुली आँखों के सामने भी
यही वो हकीकत है शायद जो किसी नींद से गुज़रती रहती
- अरुण
एक शेर
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हर वक्त रुका ठहरा, लगता के चले हरदम
आंखों में न जो आये....पूरी कुदरत एकदम
- अरुण




एक शेर
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जटिलता ही बनी आदत, कठिनता अब भली लगती
सहज सीधा सरल जीवन बिताना बन गया मुश्किल
- अरुण
एक शेर
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न है अंधेरे का कोई वजूद और न कोई चिराग़ जलाना है
समझ की ज्योत जले........................पूरी धुंध हट जाए
- अरुण
एक शेर
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जिंदगी… जीकर मरने और मरकर जीने का नाम नही
जिंदगी है.............. हर वजूद का वजूद में बने रहना
- अरुण
एक शेर
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कुदरत में सबकुछ एक का एक.. दुनिया में जुदा जुदा
रिश्तों ने बनाई दुनिया...........जहाँ सारी झंझटें बेवजह
- अरुण
एक शेर
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उजाले रह के भी अंधों से बदतर हो गई हालत
दिखाते रास्ता जो ख़ुद किसी सपने में उलझे हैं
- अरुण
एक शेर
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जो नया पूरी तरह पहचान में क्या आ सके?
पहचानने का काम माजी ही करे हर हाल में
- अरुण
एक शेर
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जो हैं हम...... वही फिर होना है हमें
जो थे ही नही उसे फिर खोना है हमें
- अरुण
एक शेर
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‘जानने’ से जान बन जाएहै जो जाना गया
दूर रख जाना हुआ तो सिर्फ पहचाना गया
- अरुण


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