३० जनवरी... हिन्दी २०१६


 1-1-2016
V एक शेर
एक शेर
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कपड़ों से मै ढका क्या.. कपड़ा ही बन गया
कपड़े ही बन गये.......मेरी पहचान के सहारे
अरुण
एक शेर
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शब्दों में विश्वास भले दिखता जीवित
प्राणों को संदेह .....दिआ करता कंपन
- अरुण
एक शेर
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दिल धडकता ख़ून फिरता प्राण चलते हैं
जिंदगी इसके अलावा कुछ नही बस ख़्वाब है
अरुण
एक शेर
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एक जैसी सरलता हो.....एक जैसी सहजता
फ़र्क़ क्या? गर एक छोटा हो बड़ा हो दूसरा
अरुण
एक शेर
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ईश का अस्तित्व मानो या न मानो
अपना होना ही....उसी का है सबूत
अरुण
एक शेर
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जान है सो जानना ही है महज़,फिर
ज्ञान ज्ञानी का पता क्यों ढूँढते ?
- अरुण
एक शेर
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मन न होता, न होती दुनियादारी कभी
अ-मन ही तो... अमन का जरिया खरा
अरुण
एक शेर
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माने हुए पर हो रहा जिसका गुज़ारा
सच देखने का कष्ट वह करता नही
अरुण
सच का सच
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नदी जबतक.......पूरी की पूरी सूख नही जाती
सारा मैदान............एक का एक नही दिखता
असत्य जबतक.. पूरा का पूरा दिख नही जाता
सच का सच..................प्रकाशित नही होता
अरुण
एक शेर
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बुझती नही है चाह.... मन को खींचती केवल
कोई नही अबतक क्षितिज को पकड पाया
अरुण
एक शेर
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मिलने में नही.. ....होता मज़ा इंतज़ार में
मंजिल पे नही तड़प.....  तड़प रहे राह में
अरुण
एक शेर
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प्रसंग में रहना है..... अंग अंग से
सोचता जो..हट जाता....प्रसंग से
अरुण

एक शेर
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जिसका मोस्ट-ऑर्डिनेरीपन खिल गया
ज़माने के लिए वह इक्स्ट्रॉर्डिनेरी बन गया
अरुण
एक शेर
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अकेलापन और एकांत
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तुम्हारी सोचता और तुम नही....चुबता अकेलापन
ये मै ही मै, अकेलापन नही......एकांत का स्वर है
- अरुण
एक शेर
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कोशिशें दूर पकड़ने को निकल जाती हैं
सामने रख्खा कोशिशों को नज़र आता नही
अरुण


एक शेर
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जिंदगी इतिहास है भूगोल है सब पाठ हैं इसमें
ये तुमपर है के किस अंदाज से तुम देख पाते हो
अरुण
एक शेर
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जाने हुए के ही बदौलत जान पाते हो सभी
जाना न जाए वो कभी........ अज्ञेय जो है
अरुण
एक शेर
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जिसकी अपनी जिंदगी... चंद दिनों का हो खेल
वह मन क्या समझ पाए अस्तित्व का सनातनपन
अरुण
एक शेर
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जान को बेजान करना और बनाना जानकारी
शब्द मन अनुभव- चितर सब काग़ज़ी हैं फूल
- अरुण

एक शेर
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प्रार्थना करना कोई कोशिश नही है
कोशिशें थकती वहींपर प्रार्थना जागे
अरुण

एक शेर
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ख़ुद पूछे ख़ुद उत्तर देवे सही गलत ख़ुद आंके
मन ही मन से बोलत... लगता अंदर से कुई झाँके
- अरुण

एक शेर
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सोचना अपने आप में है बहकना, यारों !
जो है सामने उसे.... दूर कहीं देखना यारों !
अरुण
रुबाई
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असलियत सुलझी हुई है ...कल्पना उलझा रही
कल्पना की चतुरता.. दिल की पकड ना आ रही
एक पल जागा हुआ..........तो दूसरा सोया हुआ
अंखमिचौली आदमी की समझ को गुमरा(ह) रही
- अरुण
एक शेर
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अमन सुकून तो बातें केवल.. दिल का मक्सद और हुआ
इसे बचाओ उसको मारो... मज़हब नही.... माखोल हुआ
- अरुण











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