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Showing posts from 2016

1-31 July Hindi Sher with Marathi version

1 -31 July Sher and Bodhsprshika ---------------------------------------------- एक शेर ******* एक से ही टूटकर ‘उस’.. अनगिनत टुकड़े बने हैं बस समाओ एक में ‘उस’..... छोड दो गनना उसे - अरुण मराठी बोधस्पर्शिका **************** नसणे किंवा असणे.. याच दोन शक्यता मोजत बसणे............. हा गणिती प्रपंच - अरुण एक शेर ******** व्यर्थ में सदियों न करना इंतज़ार, सच कह रहा ठीक पीछे मै खड़ा हूँ बस पलटकर देख लो - अरुण मराठी बोधस्पर्शिका **************** खुद्द प्रकाश शोधणाराच ज़र अडसर असेल तर मग उजेड त्याचे पर्यंत पोहचणार कसा? - अरुण एक शेर ******** जन्म, मृत्यु, आयुरेखा, आपदाएँ,  ये नही अपने चयन फिर किस चयन की बात करते हैं सभी दुनियाई बंदे? - अरुण मराठी बोधस्पर्शिका **************** अंगण निवडलेले असले आणि खेळ ही आवडी चा असला, तरीही निवड करणाऱ्याचा जन्म किंवा मरण त्याला विचारून घडत नाही - अरुण एक शेर ******* डोर जीवन की इसे सुलझी उसे उलझी लगे डोर तो डोर ही रहे....जो भी लगे जैसी लगे - अरुण मराठी बोधस्पर्शिका *************** जगणे नेहमीच असते सरळ साधे जगणाऱ्याची नज

१ जून से ३० जून २०१६

एक शेर ******** जिंदगी खुद चलके आती है जीती है हर सांस में अपने हम समझते हैं के ये हमारी है.........हम जी रहे हैं उसे - अरुण एक शेर- २ जून २०१६ ********************* न यादों का सिलसिला होता न होती खाबों की ज़रूरत हर साँस आदमी की बन जाती एक मुकम्मल जिंदगी - अरुण एक शेर- ४ जून २०१६ ********************* दूर की शुरुवात होती अपने घर से ही, मगर घर को तो देखा नही... ब्रह्मांड की बातें करें - अरुण एक शेर ******* गहरा, धूसर, फीका अंधेरा..बंद आँखों में है तीनों का बसर रौशनी छेडती है पलकों को ..पलके हैं...... बेख़बर बेअसर - अरुण एक शेर ******** खेल के वास्ते खींची लकीरें थी......... यहाँपर बिगड़ते मेल दिल का बँट गये सब लोग पालों में - अरुण एक शेर ******** रोना-हँसना एक जैसा ही दिखे फिर भी समझ के भीड़ में... हर शख़्स की है दास्ताँ बिलकुल अलग - अरुण एक शेर ******** सारी दुनिया का होवे एक ही दिल एक ही सांस बंदा समझे के....... दुनिया उसके लिए जीती है - अरुण एक शेर ******* जिन रास्तों से थे गुज़रकर आ गये उन्हींको खींच लाते और बनाते हो नये? कहींभी चलके जाओ

मई २०१६

एक मुक्तक *********** गुजरता है जहां जहां से अपना होना, वहां वहां की शक्ल ओढ लेता है कभी सांस, कभी दर्द, कभी एहसासे जिगर ज़हन के पास मगर पूरी तरह खोता है - अरुण एक शेर ******* हवा तो छू रही है पर कभी देखी नही है दिखता आसमां फिर भी कभी छूता नही - अरुण एक शेर ********* क्या मिलेगा सोचे रख्खे..... खोजने के पूर्व ही सत्य उसकी खोज में आये तो आये किसतरह? - अरुण एक शेर ******* आदमी न किसी बंधन या कारागार में हुआ बंधन या कारागार का ही नाम.....आदमी - अरुण एक शेर ********* जिंदगी तो जी रही है खुदको अपने ढंग में मगर अफ़सोस के बंदा चाहे उसे अपने रंग में - अरुण एक शेर ********* एक ही चीज़ के हों सौ नाम, चीज़ बँट नही जाती हो नज़रिए हज़ार भले ही... दुनिया टूट नही जाती - अरुण एक शेर ******* दरो दीवार........ इसको रोक पाती है नही यही सच्ची मुहब्बत है, नही कुई राजनीती - अरुण एक शेर ******** एक ही वक्त कई वक्तों में रहता जो है बंदा, बीता हुआ, जीता हुआ, अजन्मा है - अरुण एक शेर ******* ज़मीं पे रख्खे आड़ी.. अपने ज्ञान की सीढी नही पाया पकड कोई समझ का आसमा

१५ अप्रैल हिंदी

15 April 2016 एक शेर ******* जिसके लिए बदन हो किरायेका इक मकान उसको न चाहिए कुई चादर मज़ार पर -अरुण एक शेर ******** मौज उठती ओ उठाती है........ कई मौजों को आदमी उठ्ठी लहर.. इसके सिवा कुछभी नही - अरुण एक शेर ******** जैसी लगती वैसी होती है नही ये जिन्दगी है यही कारण के सच कभी नही देखा गया - अरुण एक शेर ******** जो जी ली जिंदगी उसीको नये से जीना फिर कहना कि है ये नई .... सच नही - अरुण एक शेर ******** एक पल ही जिंदगी है मगर हमको क्या पता हमने तो याद-ओ-खाब से रिश्ता बना लिया - अरुण एक शेर ******** अपने ही जहन्नुम में साँस लेते हुए देखते खाब तो जन्नत के ख़्यालमें डूबे - अरुण एक शेर ******** रुक न सके... तन-मन से.. जिंदगी का धुआँधार बहाव एक दिन तो टूटेंगे ही.... ये किनारे, ये बाँध और पड़ाव - अरुण एक मुक्तक *********** पूरीतरह से साँस लो पूरीतरह से छोड आधीअधुरी जिंदगानी काम की नही - अरुण बेहतर है नज़ारों से नज़ारों को देखना आधीअधुरी नज़र किसी काम की नही - अरुण एक शेर ******** देखना और दिखना एक ही काम के दो नाम साकारना यह सत्य जीवन में...है सत्यक

14 April 2016

एक शेर ******* पीठ पीछे जो हुआ....... वोही दिखे है सामने असलियत जिस हाल में हो एक जैसी ही हुई - अरुण एक शेर ******* खोजने को कुछ नही..........सब खुल्ले रख्खा   खोज जिसकी भी करो.........स्व-पल्ले दिख्खा - अरुण एक शेर ******** यह यहाँ अभी हुआ.......... वोही हमेशा हर तरफ खोजते हो क्यों समय के चाक चढ़कर सब तरफ़ - अरुण एक शेर ******** अबतक तो जी रहे हो ढली ढलती जिंदगी जाना न ……..जिंदगीकी हुआ करती जिंदगी - अरुण एक शेर ********* नाटकों में, किरदार निभाये जाते हैं जिंदगी में मगर निभा लिए जाते हैं - अरुण एक शेर ******** मिची आँखों के सामने सपने, खुली आँखों के सामने भी यही वो हकीकत है शायद जो किसी नींद से गुज़रती रहती - अरुण एक शेर ******** हर वक्त रुका ठहरा, लगता के चले हरदम आंखों में न जो आये....पूरी कुदरत एकदम - अरुण एक शेर ******* जटिलता ही बनी आदत, कठिनता अब भली लगती सहज सीधा सरल जीवन बिताना बन गया मुश्किल - अरुण एक शेर ********* न है अंधेरे का कोई वजूद और न कोई चिराग़ जलाना है समझ की ज्योत जले........................पूरी धुंध हट जाए - अरुण

31 March 2016

एक शेर ******** जो नही पाया जनम.........मरने का उसके इंतजार जिसका होना सच नही उस ‘मै’ को क्योंकर मारते - अरुण एक शेर ******** जो बिलकुलI साफ़ होता है नही आता नज़र हवा छूकर निकल जाये.... नही आती नज़र - अरुण एक शेर ******** अपनी ख्वाहिशों को जिंदगी में ढालने के बजाय जी लेने दो ख़ुद जिंदगी को....... उसकी धुन में - अरुण मुक्तक ******* कमाना ज्ञान हो तो कोशिशें करनी पड़ें धरा है सामने बस बूझना काफ़ी हुआ जिनको मिला ऐसेही सस्ते में मिला है जिनको नही..... वे जूझते ही रह गये - अरुण एक शेर ********* बदल रही है जगह या बदल रहा है स्वरूप खड़ी है वस्तु सगर...... राह पे चलते चलते - अरुण सगर=सभी एक शेर ******** जो बीत गई वो बीत गई.. जिंदा नही है याद में आना किसीका..कोई आना नही है - अरुण एक शेर ******** हर कदम पे असलियत को भूलना चाहे मगर, उसकी चर्चा उम्रभर करता रहे - अरुण एक शेर ****** जबतलक आदमी... आदमी से मुख़ातिब न था झंझटें रिश्तों की बसा करती थी........कोसों दूर - अरुण एक शेर ******* जी लेना जिंदगी को..न जाने क्या होता है? अबतक तो जिंदगी ने ही जिया

14 March 2016

एक शेर ******** कुदरत की कोख है......कुदरत निकल रही हमने समझ लिया के....... बेटा जनम रहा अरुण है समंदर ही उछाल लेता हुआ न मौजों से मौज...... टकराए पूरे ज़हन का मथना... ख़ुद में कोई  न मन को .......चलवाए - अरुण रुबाई ******* जिंदगी द्वार खटखटाती है.... हाजिर नही है टहलता है घर से दूऽऽऽर..... हाज़िर नही है ख़याली शहर गलियों में.. भटकता चित्त यह जहांपर पाँव रख्खा है वहाँ ...हाज़िर नही है अरुण एक शेर ******** बहका मन फिर मन से ना वो राजी होता है क़ाबू करनेवाला ही......... बेकाबू होता है अरुण एक शेर ******* उजाला हो दिखे अंधियार में दिखता नही नज़र में रौशनी हो तो.....सबब कोई नही अरुण एक शेर ********** साया दिख रहा हो.. पर कभी छूता नही मतलब शब्द को छूता मगर दिखता नही - अरुण एक शेर ********** हवा ही बात करती है हवा से आती-जाती है हकीकत तो जमीनी थी यहींपर और यहीं है अरुण एक शेर ********* नही हैं रास्ते दो ज्ञान भक्ती....... ........दो अदाये हैं हिलाकर सर कोई तो सर झुकाकर दाद देता है कोई अरुण एक शेर ******** आग से उठ्ठे धुएँ में... एक निश्चय आ ब

१ मार्च २०१६

एक शेर ********* बहते पानी से निकल आते हैं किनारे दो सोच बहती तो.. सोच-ओ-सोचनेवाला अरुण एक शेर ********* रफ्तार से दौडती गाडी...उठता है बवंडर जिससे सोचता....ये जो रफ़्तार है गाडी में.. ...है उसीसे अरुण एक शेर ********* खुदमें में बैठे  देखूँ दुनिया.....ख़ुद को देखूँ दुनिया बैठे देखूँ............तबतो दिखे खुदा अरुण एक शेर ******* गीता और क़ुरान में जो भी लिख्खा ग़ौर करो किस काग़ज़ पर लिख्खा इसका ख़्याल न कर अरुण एक शेर ******* अपना ये.. पराया वो...यही इंसान की फ़ितरत भला है के.. नही कुदरत ने थामा...... ये रव्वैया अरुण एक शेर ******* अपनी सूरत आइने में हूबहू...लगती भले पर सभी अपने ही चेहरे पर लगाते पावडर अरुण एक मुक्तक ************* नही जबतक जगा हो चित्त 'अर्जुन' का उसे हर 'कृष्ण' की बातें लगें बेबुझ, कठिन अचरन हज़ारों प्रश्न पूछे सुलझने के वास्ते, मुर्छा मगर जागे हुए की बात तो.....उसके लिए  उलझन अरुण एक शेर ******* चकाचौंध है मन-प्रकाश की इतनी गहरी भरी दुपहरी भी.....अँधियारासा लगता है अरुण एक शेर ********* मै, मेरे, मेर

३१ जनवरी २०१६

रुबाई ****** दिल की धड़कन ..मन की मन मन... धमनियाँ हैं तर देख चलती जिंदगानी और ...........उसका हर असर अपने भीतर और बाहर.. .........जिंदगी जिंदा सबक़ व्यर्थ के प्रवचन सभी सब ........... और चर्चा बेअसर - अरुण

३० जनवरी... हिन्दी २०१६

 1-1-2016 V एक शेर एक शेर ******** कपड़ों से मै ढका क्या.. कपड़ा ही बन गया कपड़े ही बन गये.......मेरी पहचान के सहारे अरुण एक शेर ******** शब्दों में विश्वास भले दिखता जीवित प्राणों को संदेह .....दिआ करता कंपन - अरुण एक शेर ******** दिल धडकता ख़ून फिरता प्राण चलते हैं जिंदगी इसके अलावा कुछ नही बस ख़्वाब है अरुण एक शेर ******** एक जैसी सरलता हो.....एक जैसी सहजता फ़र्क़ क्या? गर एक छोटा हो बड़ा हो दूसरा अरुण एक शेर ******** ईश का अस्तित्व मानो या न मानो अपना होना ही....उसी का है सबूत अरुण एक शेर ********* जान है सो जानना ही है महज़,फिर ज्ञान ज्ञानी का पता क्यों ढूँढते ? - अरुण एक शेर ********* मन न होता, न होती दुनियादारी कभी अ-मन ही तो... अमन का जरिया खरा अरुण एक शेर ********* माने हुए पर हो रहा जिसका गुज़ारा सच देखने का कष्ट वह करता नही अरुण सच का सच ************* नदी जबतक.......पूरी की पूरी सूख नही जाती सारा मैदान............एक का एक नही दिखता असत्य जबतक.. पूरा का पूरा दिख नही जाता सच का सच..................प्रकाशित नही होता अरुण एक शे

2 January 2016

एक शेर ******* आँखें खुली हुई हैं............रौशन है रास्ता फिर भी न कुछ भी देखूँ मन-तमस के सिवा अरुण एक शेर ********* ढेरों किताबें पढ़ लूँ फिर भी न हो समझ रस सत्य में नही.....बस बखान में जो है अरुण एक शेर ******** तेरी कुछ कहूँ , कुछ आकाश की भी कहूँ शायद ........तुम्हारे पंखों में हौसला जगे अरुण एक शेर ******** दवा की खोज है किस काम की यारों जहाँ बीमार ही सब रोग की जड़ है अरुण रुबाई ****** ख़्वाबों के दीप भीतर इक रौशनीसी फैले इस रौशनी में चलते दुनिया के सारे खेले करवट बदलती भीतर जबभी कभी हक़ीक़त कपती है रौशनी....उठते हैं जलजले अरुण एक शेर ******** चढ़ाओ फूल माला कुछ भी मिलना है असंभव चढ़ाओ 'ख़ुद' को फिर हर साँस में उसकी रवानी अरुण रुबाई ------------- दिक्कतें हल नही होतीं कभी पूरी की पूरी प्यास मिटती ही नही कभी पूरी की पूरी दिखानेवाले ने तो धरी सामने पूरी तस्वीर देखनेवाले ने न देखी कभी... पूरी की पूरी अरुण एक शेर ******** किसी और ने दिया मुझको मेरा नाम पता बीज में अपने तलाशूँ तो असल जान सकूँ अरुण एक शेर ******** सीखने की प्यास ही