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Showing posts from October, 2015

29 0ctober

अपने चित्तपर व्यापक ध्यान जाते दिखे ************************************ चित्त है....... चित्र की तरह विचित्र अलग अलग प्रतिमाएँ... एकही स्याही है। एकही धरातल पर चित्र बने.. दिखे कहीं पर्वत तो दिखे कहीं खाई है। अरुण कुछ शेर ************ हटा जब मोह बाहर का, खुले इक द्वार भीतर में पुकारे खोज को कहकर- यहाँ से बढ़, यहाँ से बढ़ भरी ज्वानी में जिसको जानना हो मौत का बरहक* उसी को सत्य जीवन का समझना हो सके आसाँ जिसम पूरी तरह से जानने पर रूह खिलती है 'कमल खिलता है कीचड में' - कहावत का यही मतलब ख़याल भरी आँखों से............. मै दुनिया देखूं तो दुनिया दिखे ......................ख़यालों जैसी अँधेरे से नहीं है.............. बैर रौशनी का कुई दोनों मिलते हैं तो रौनक सी पसर जाती है बरहक = सत्य, * सिद्धार्थ (भगवान बुद्ध) के बारे में - अरुण एक शेर ********* एकही वक़्त.. कई सतह पे जीनेवाला आदमी ख़ुद में खुदा और खुदाई भी है - अरुण ग़ौर करें ******** किसी को याद  करना फिर उसीको भूल जाना वजह येके.......नयीही सोचका दिल में उभरना कोई भी सोच..........अपनेआप में पूर

26 अक्तूबर

वे भी भरोसेमंद नही... ********************** वे लोग जिनकी राष्ट्रनिष्ठा पर शक हो उन्हे भरोसे लायक न समझना वैसे तो ठीक ही है । पर क्या वे लोग या संगठन जो देश के संविधान की मूलभूत आत्मा को ही सिरे से नकारते हैं .. और फिर भी अपनी इस सोच और इरादे को आदर्शवादी शब्दों एवं धारणाओं में छुपाकर रखते हैं.... भरोसेमंद हो सकते हैं? अरुण एक शेर ********* अल्फ़ाज़ हैं इशारें महज़.. ..हकीकत नही पर उसे ही मान लेते सच.....ऐसे कम नही अरुण यह जीवन केवल एक संचार है **************************** जीवन सिर्फ है एक संचार...न कोई आकार न प्रकार न कोई नाम न उच्चार न किसी काल-पट्टी के खांचो से कट सके .... न भूत, भविष्य और वर्तमान में बट सके न बिंदु है सो न है रेखा.. दिखे... जैसा जिसने देखा जब देखो तभी है ....न कल था न अभी है ....और इसीलिए इसे नया या पुराना कहना भी ठीक नहीं न पुराना था कभी सो ............नया कहना भी सटीक नहीं अज्ञानवश निरंतरता का आभास जगाने वाला स्थाई या कि अस्थाई.... इन जैसे सवालों को उठानेवाला... यह जीवन केवल एक संचार है -अरुण     एक शेर ********* अपने रिश्तों

21 0ctober

एक शेर ********** हालात-ओ-तजुरबात के चेहरे.... अलग अलग आदमी तो एक ही है जो लगता....  जुदा जुदा अरुण फूल और प्रेम ************* भले ही फूल किसी खास टहनी से जुड़ा लगता हो, उसकी सुगंध परिसर के कण कण में घुल जाती है.. मगर आदमी का प्रेम अपनों तक ही सिमटकर रह जाता है -अरुण मुक्ति ************ पिंजड़े का पंछी खुले आकाश में आते मुक्ति महसूस करे यह तो ठीक ही है परन्तु अगर पिंजड़े का दरवाजा खुला होते हुए भी वह पिंजड़े में ही बना रहे और आजादी के लिए प्रार्थना करता रहे तो मतलब साफ है.... आजादी के द्वार के प्रति वह सजग नही है वह कैद है अपनी ही सोच में अरुण मृत्यु ******* मृत्यु को लेकर बहुत अधिक गूढगुंजन करना व्यर्थ है।मृत्यु भी एक प्रकार की गाढ़ी नींद ही है। गाढ़ी नींद हो या पूरी बेहोशी ... अगर प्राणी प्राणडोर से बँधा हो तो उसके जागने की संभावना बनी रहती है। प्राण निकल गये हों तो अन्य उसे मृत हुआ जान लेते हैं। मतलब यह कि... गाढ़ी नींद या पूरी बेहोशी...दोनोंही, पुन: जागने की संभावना से युक्त, मृत्यु की ही अवस्थाएँ हैं। अरुण अस्तित्व की अस्तित

14 0ctober

सच्ची बात ********** गर नदी होती नहीं... फिर तट न होते दृश्य - दर्शक,...दृष्टि के ही दो किनारे अरुण ------------------------------------------------ 'अंतिम यात्रा' **************** क्यों न शुरू की मेरी 'अंतिम यात्रा' की तैयारी... उसी दिन जिस दिन......... मैं इस धरती पर आया *** उसी दिन से तो शुरू कर दिया आपने गला घोटना मेरी कुदरती आजादी का.. उसी दिन तो शुरू किया आपने.....मेरे निरंग श्वांसों में..... अपनी जूठी साँस भरकर...उसमें अपना जहर उतारना...... उसी दिन से तो सही माने में मेरी क़ैद शुरू हुई, ***** आपके विचारों, विश्वासों और आस्थाओं ने मेरी सोच को रंगते हुए ....... मुझे बड़ा किया...मुझे पाला पोसा बढ़ाया....आप जैसे 'अच्छे-भलों' के बीच में लाया.... आपने जिसे अच्छा समझा वैसा ही जीना सिखाया.....पर कभी न समझा कि...... आप फूल को ......उसकी अपनी ज़िंदगी नही,  समाज को जो भाए , ऐसी मौत दे रहे हो, *** अब तो मै बस ....सामाजिक प्रतिष्ठा और उपयोग का सामान बनकर रह गया हूँ ... अब पहुँचने जा रहा हूँ अंतिम छोर पर....... उस राह के...जिसका आरम्भ ही न हो पा

तारीख़ १२ अक्तूबर २०१५ तक

एक शेर ********* कोई नही इरादा..... कोई नही डिज़ाइन इंसा का मन ज़हन ही इस सोंच से परेशां ------------- सारी क़ुदरत किसी मक्सद से नही और न ही किसी योजना का हिस्सा है। ये आदमी ही है केवल जो मक्सद की सोचता है। अरुण सच्ची बातें *********** हर मंजिल........ कोशिश के चलते पायी जाती है इक ऐसी भी, कोशिश के थमते... पास चली आती ********** चेहरे देखकर ही दिल से दिल जुड़ते नही हैं फकत पढ़ शब्द गीता के प्रभु मिलते नही हैं अरुण एक शेर ********* है यादों के परे जो, बस उसका भान हो जाए प्रभु को याद करने से ....प्रभु मिलते कहाँ हैं? अरुण प्रेमपत्र ******* सभी लिख रहे हैं अपने भीतर अपनी अपनी कहानियाँ, अपनी अपनी सोच और मंसूबे....... जिसपर लिखा जा रहा है वह काग़ज़, पत्र या प्रेमपत्र तो सब का एक ही है अरुण यह 'प्यास' तो निजी ही है ************************* यह भीड़ उन लोगों की ही जो अपनी निजी 'प्यास' का समाधान ढूंढ़ नही पाए पर यह जान कर कि इर्दगिर्द भी लोगों में ऐसी ही 'प्यास' है, वे इकठ्ठा हुए,'प्यास' का उपाय ढूँढने में जुट गए, कई सा