तीन रुबाईयां

रुबाई
******
ज़रूरत को सयाना ठीक से परखे
ज़रूरी जानकारी को टिकी रख्खे
निरा मूरख पढत-पंडित गलत दोनों
गिरे कोई तो कोई ज्ञान को लटके
- अरुण
रुबाई
******
दुनिया में नही होती कुई बात कभी पूरी
दिन रात जुड़े इतने .....छूटी न कहीं दूरी
हर रंग दूसरे से कहीं ज़्यादा कहीं फीका
इंसा ना समझ पाए क़ुदरत की समझ पूरी
- अरुण
रुबाई
******
यह जगत टूटा हुआ तो है नही....."लगता" ज़रूर
और फिर आते निकल.. ....स्वार्थ भय ईर्षा ग़रूर
इसतरह मायानगर आता नज़र.. ....बनता बवाल
"लगना" ऐसा जो निहारे....जगत उसका शांतिरूप
- अरुण

Comments

Popular posts from this blog

षड रिपु

मै तो तनहा ही रहा ...