दो रुबाई आज के लिए

दो रुबाई आज के लिए
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आत्म-बल का व्यर्थ में गुणगान करता है
परमात्म-बल ही सृष्टि का सब काम करता है
काम करना शक्ति का ही काम है.. यारों!
अपनी कहके उसको... अपना नाम करता है
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मँझधार से जो भागे, समझे न जीस्ते क़ुदरत
ढूँढे जो बस किनारे, डरना ही उसकी फ़ित्रत
सपने गुलों के हों तो काँटों से कैसा डरना?
जज़्बा-ए-दोस्ती तो काँटों गुलों की इशरत

जीस्त =जीवन, फित्रत = स्वभाव, इशरत= आनंद
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- अरुण

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