रुबाई

रुबाई
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जबतक चले ये साँस जीता हूँ मर रहा
पल पल लहर है मेरी सरिता सा बह रहा
फिर भी जनम मरण की चर्चा का शौक़ है
मुझसे बड़ा न मूरख दुनिया में पल रहा
अरुण

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