रुबाई

रुबाई
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माया नही है दुनिया...... मिथ्या नही जगत
मिथ्या है मन की खिड़की भ्रमराए जो जगत
तनमन को जोड़कर जो देखे असीम  आलम
उसकी खरी है दुनिया उसका खरा जगत
- अरुण

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