आज की ताज़ा गजल

आज की यह ताज़ा ग़ज़ल
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हज़ारों हैं ...करोड़ों जीव हैं....  पर  आदमी जो
समझता है..ये दुनिया है....तो केवल आदमी ही

कहीं से भी कहीं पर .....जा के बसता है परिंदा
मगर पाबंद कोई है..........तो कोई  आदमी ही

जभी हो प्यास पानी खोज लेना.. जानती क़ुदरत
इकट्ठा करके रखने की हवस.......तो आदमी ही

बचाना ख़ुद को उलझन से सहजता है यही लेकिन
फँसाता खुद को....बुनता जाल अपना आदमी ही

बदन हर जीव को देता ज़हन..... जीवन चलाने को
चलाता है ज़हन केवल .........तो केवल आदमी ही

खुदा से बच निकलने की ....कई तरकीब का माहिर
खुदा के नाम से जीता ..... .....तो केवल आदमी ही

- अरुण

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