तीन रुबाई आज के लिए

पत्तों को पेड़ का तो कोई पता नही
लहरों को समंदर का कोई पता नही
पानी में बुलबुलों को हमने दिया वजूद
पानी को बुलबुलों का कोई पता नही
**************************************
जिसमें यह वक़्त गुज़रता... ऐसी उलझन
जिससे दिल बैठ ही जाता.... ऐसी उलझन
उलझने लाख...उलझने ही जिंदगी का सबब
जो स्वयं सुलझा हुआ, उसको ना कोई उलझन
******************************************
जाननेवाले ने नही जाना... 'जानना' क्या है?
जाना है सभी, तो फिर जानना क्या है?
जानना तो यहाँ कुछ भी नही.... यारों !
'जाननेवाला' ही...न हो, तो जानना क्या है?
***************************************
- अरुण

Comments

Popular posts from this blog

मै तो तनहा ही रहा ...

यूँ ही बाँहों में सम्हालो के