दो रुबाई आज के लिए

अज्ञान में पड़ा हूँ...इंसा को रंज जो है
करुणा तो फैलती है.. इंसा ही तंग जो है
सदियों से खोज जारी.. पर रौशनी न आये
चर्चा बहस.. फ़िज़ूल .. दरवाज़ा बंद जो है
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थोड़ा ही ज्ञान.. इतराते बहोत
रस तो नदारद.. चबाते बहोत
न सोता, न नदिया, न दरिया ही देखा
मगर पार जाने की बातें बहोत
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- अरुण


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