निराकार ही साकार जैसा

निराकार ही साकार जैसा
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कमजोर और चौखट में उलझी आँखो से देखते हो
इसीलिए दुनिया नजारा बनकर दिख रही है
चौकट न हो और आँखे भी अगर सबओर का सबकुछ
एक ही बार में देख सकेंगी
तो नजर आनेवाली यह दुनिया अदृष्य हो जाएगी
- अरुण

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