इसपर गौर करें



सूर्य, धरती और एक तना पेड़....
तब परछाई पेड़ की.. तो होगी ही...
इस परछाई पर न मल्कियत सूर्यकी
न धरती की और न ही उनके बीच कोई
भावनात्मक लगाव...
ठीक ऐसे ही, अपने परिवेश के प्रकाश में खड़ा
मानव शरीर ...जिसके भीतर उभरती परछाई
यानि मानव मन.. मगर ढंग अलग ...
इसकी मल्कियत शरीर पर और
परिवेश पर भी
....................... अरुण   

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सुन्दर और भाव पूर्ण रचना के लिए बहुत-बहुत आभार..

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