सही जागरण सही नींद



यह मस्तिष्क दिनभर की अच्छी बुरी झंझटों से थका हारा
अपनी थकान हटाने सो जाता है,
अगली सुबह
बीती सिलवटों से मुक्त होकर, तरोताजा बन जाग उठता है
कुछ ही ऐसे है...जिनका मस्तिष्क दिन के ही हर क्षण तरोताजा होता रहता है
क्योंकि उनका मस्तिष्क चेतना के कण कण को,
क्षण क्षण को त्रयस्थता से देखता रहता है
बस देखना ही देखना है, देखने में ही कृति (action) है   
-अरुण    

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सुन्दर प्रस्तुति...!

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