केजरीवालजी !!!



केजरीवालजी !!!
इस बार तो आपका दांव चूक गया. दो दिन में ही धरना पिट गया. आपके सभी आम और खास विरोधियों को, आपको ‘पीटने’ का अच्छा मौका मिल गया. खैर दुखी न होइए, सभी innnovative आइडियाज के लिए वे सब आप का ही मुंह ताकते रहते हैं. अब तक उन्होंने आप की काफी चीजे चुरा  ली हैं. .....टोपी, मिल-बैठकर निर्णय लेना, बिजली-पानी के दामों में कटौती, लोकायुक्त-लोकपाल जैसे मामलों में दिखाई जानेवाली तत्परता, Manifesto के लिए community (महिलाओं से) consultation, मिडिया के खुरापाती सवालों पर सवाल उठाने की हिम्मत, जमीन से जुड़े रहने की प्रेरणा ..... ये सब बातें तो.. वे आप से ही सीख रहे हैं.
केजरीवाल जी !- ध्यान रहे देश का आम आदमी हर बार आपके पीछे दौड़कर नहीं आ सकता, उसकी भी अपनी कुछ मजबूरियां हैं. दूरियों की (नेता और जनता के बीच की) उसे आदत सी पड गयी है. उसे मंत्री महोदय कुर्सी में ही बैठे अच्छे लगते हैं... और आप है कि .... सड़क पर पलथी मार कर बैठ जाते हैं. आपके इस ब्यवहार के लिए उन्होंने एक अच्छा नाम दे रखा है – नौटंकी. आप के ही टंकियों से पानी चुराने वाले ये लोग आपको नौटंकी से कुछ अधिक नहीं समझते है. हाँ, एक तरफ, आपको गलियाँ तो देते है .. और दूसरी ओर देखते रहते हैं .. आम आदमी कैसे react कर रहा है. इसबार आप का धरना .. लोगों को कुछ जंचा नहीं. इसी बात को भांप कर सभी ने आप पर हल्ला बोल दिया. आपने भी अपनी फजीयत को जनता की जीत कहकर अपना बोरिया बिस्तर सड़क से उठा लिया, चलिए सब के लिए अच्छा ही हुआ..
-अरुण

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