सृष्टिस्वरूप- आत्मस्वरूप- अर्जितरूप



पहली श्वांस के समय से आदमी का
सृष्टि स्वरूप उसके आत्म-स्वरूप में अवतरित होता है.
बाद में, पूरी तरह से अपने आत्मस्वरूप में
रहनेवाला यह आदमी, समाज के संपर्क में आनेपर
धीरे धीरे अपने अर्जितरूप में प्रवेश कर जाता है
तथा अपने आत्मस्वरूप का स्मरण खो बैठता है,
आखिरी श्वांस के समय जीवित उसका अर्जित
तथा आत्मस्वरूप पुनः सृष्टि-स्वरूप में विलीन हो जाता है.
सभी अवस्थाओं में सृष्टि-स्वरूप तो जीवंत ही है
-अरुण          

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