तुझे इस दिल में बसाने की हवस जागी तो मेरे सोये हुए ख्वाबों के दिये जल ही गये याद हर राह – ओ- हर मोड पे जब जागी तो जज्बे उल्फत के नरम जहन में अब पल ही गये तेरे ख्यालों के सितारों को चमक आयी तो मेरे हर वक्त का अब चैन सब्र ढल ही गया आँखों आँखों में जहां नर्म से जज्बे जागे सब्र की डोर से बांधा हुआ दिल हिल ही गया तेरी आँखों से बुलाहट की सदा आई तो दिल को एहसास हुआ प्यार तेरा झुक ही गया छुपी राहों से दर – ए – दिल पे चले आने पर मै तो तनहा ही रहा प्यार मेरा बिक ही गया -अरुण
यूँ ही बाँहों में सम्हालो के सहर होने तक, धड़कने दिल की उलझ जाएँ गुफ्तगू कर लें जुबां से कुछ न कहें, रूह्भरी आँखों में डूबकर वक्त को खामोश बेअसर कर लें जुनूने इश्क में बेहोश और गरम सांसे फजा की छाँव में अपनी जवां महक भर लें बेखुदी रात की तनहाइयों से यूँ लिपटे बेखतर दिल हो, सुबह हो तो बेखबर कर ले -अरुण
अब तक तो केवल भ्रष्टाचार ही चलता रहा, अब ‘भ्रष्टाचार’ - इस विषय की भी बहुत चलती है, हर चर्चा अब इसी से शुरू होकर इसी पर थमती है चर्चा की आजादी सब को है. तथाकथित भोलीभाली समझी जानेवाली जनता से लेकर तथाकथित संदिग्ध भ्रष्टाचारी राजनीतिज्ञों और शीर्षसत्ताओं तक - सबके के दिलों में चर्चा की भारी दमक है सभी के होंठों को आरोप-प्रत्यरोपों की ललक है आरोपों के इशारे सभी दिशाओं से और सभी दिशाओं में घुमते नजर आते हैं आरोपों को नही मालूम कौन पक्ष और कौन विपक्ष है और इसीलिए सभी तथाकथित सत्ताएँ बाहर से बहुत ही बडबोली तो भीतर में शायद बड़ी पोली हैं सबसे ज्यादा निर्भीड आवाज यदि किसी की है तो वो है मिडिया और वे सब तथाकथित साहसी लोग जिनके पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है, व्यवस्था बदलने के लिए निकले ये लोग किसी का बदला लेने निकले लगते हैं जनता की जिम्मेदारी उठाने का दावा करते हैं परन्तु आचरण में बड़े गैरजिम्मेदाराना दिखते हैं जनता भी वैसी ही खुश दिखती है जैसी फिल्मों में मारधाड़ देखकर खुश होती है समाचार में सम-आचार कम और चटनी-अचार अधिक दिखता है क
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