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Showing posts from September, 2013

गौर करने योग्य हैं ये पंक्तियाँ

अँधेरे को न अँधेरा मिटाता है कभी ‘नींद में’ जागनेवाला, ‘नींद से’ न जागता है कभी अंधरे को न पता है अँधेरे का और ... न देखी है नींद ने कभी बेहोशी -अरुण  

पशुत्व से मनत्व और मनत्व से सृजनत्व

पशुत्व (Animatio n) से मनत्व (human) और मनत्व (human) से सृजनत्व ( Creation ) की दिशा में आदमी उन्नत हो सकता है. अपना पशुत्व यदि ठीक से न समझा गया तो मनुष्य ठीक से मानव नही बन पाता और अपने मनत्व को यदि मानव ठीक से न देख ले तो वह सृजन की अवस्था में उदित नहीं हो पाता -अरुण    

मस्तिष्क और मन

मस्तिष्क संवेदनाओं का संयोजनकर प्रत्यक्ष ज्ञान अनुभूत करता है और मन इस अनुभूत प्रत्यक्ष ज्ञान का संयोजन कर संकल्पनाएँ रचता है इसतरह मस्तिष्क सृष्टि से सीधा संपर्क करता है तो मन अपनी संकल्पनाओं के माध्यम से .. -अरुण        

दिल केवल शायरी का विषय

हर दो या अनेक लोगों के बीच अगर दिल के रिश्ते बनें तो कैसे बनें ?... बीचमें मन की छदमी दीवार जो   खडी है. बीते अनुभवों, धारणाओं, घावों, मन-भावी यादों ... और ऐसी ही कई बातों से बनी इस दीवार से ध्वनित इशारों से ही सारे रिश्ते संचालित हो रहे हैं दिल केवल कविताओं, कथाओं   और शायरी का विषय बन कर रह गया है -अरुण    

जीवन-रथ और दुनिया की भीड़

दुनिया की भीड से गुजरते हुए अपना रास्ता बनाने वाले को मन की लगाम कसते हुए अपना जीवन रथ ठीक दिशा में ले जाना पड़ता है जो निर्मन हो पातें है उनका जीवन रथ बिना किसी लगाम और बिना किसी टकराहट के भीड़ से सहज गुजर जाता है -अरुण