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Showing posts from June, 2013

पल पल बनकर जीना होगा

जिंदगी हर पल में जीती है, और आदमी ? हर पल के बाहर हर पल में जीने के लिए आदमी को पल पल बनकर जीना होगा. हो तो ये रहा है कि आदमी की जिंदगी का हर पल आदमी बन कर जी रहा है -अरुण  

जबतलक जुदा जुदा हैं दिमाग और दिल

कुछ भी खोया नहीं फिर भी खोजना है शुरू खोजने वाले के शुरू होते ही खोजने का ख्याल शुरू   किया खोज के ख्याल ने ही खोना शुरू ऐसे में जिंदगी भी कट जाएगी पर न होगा कुछ भी हासिल जबतलक जुदा जुदा हैं दिमाग और दिल -अरुण    

समझने के दो तरीके

किसी भी बात को समझने के दो तरीके हैं एक है उस बात के बारे में जानना और दूसरा है उस बात को जीना जानना काम है मन, बुद्धि और स्मृति का और जीना काम है ह्रदय की अवधानता का. जानना जानते हुए भी न जानने के बराबर है और जीना न जानते हुए भी पूरीतरह जान लेने के बराबर -अरुण    

मौत किसी को नहीं जानती

ये तो याद नहीं कि मेरे जन्म के समय मुझे मिलनेवाली जिंदगी ने मेरा नाम पता ठिकाना मकसद और मंजिल के बारे में मुझसे पूछा था की नहीं? पर यह तो मै साफ साफ देख रहा हूँ कि सामने खड़ी मौत को भी इस बात में कोई रूचि नहीं है कि   मै कौन हूँ, किस जातपात, देश सूबा से ताल्लुक रखता हूँ, जिंदगी में मैंने क्या कमाया या खोया हैं. उसे तो इस बात से भी कोई सरोकार नहीं कि मै आदमी हूँ, या कोई और प्राणी या किसी जंगल में पला पेड़ पौधा -अरुण