अरूप में ही रूप दिखता है



सारा अस्तित्व बिना किसी रूप के
अस्तित्वमय है.
देखने वाले की आँखें ही
उसमे कोई रूप-आकार
देख लेती हैं.
देखनेवाले की आँखों की दृष्टि-सीमाएं,
पूर्वानुभव, आकार की आकांक्षा और
उसे वस्तु बनाकर देखने में होनेवाली
सुविधा/उपयोगिता के परिणामस्वरूप
वस्तुतः अस्तित्व जो अरूप अवस्था में है
उसमे कोई या कई रूप देख लिए जाते हैं
-अरुण   

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