दोनों किनारे एक ही हैं



नदी और उसके दो किनारे
दिखाई देते ही,
यहाँ-वहाँ, इस-उस,
इधर-उधर जैसी संकल्पनाएँ
वास्तविक लगने लगती हैं.
जिसके चित्त में हर पल हर क्षण
नदी-तल की जमीन जागरूक और जीवंत है,
उसको किनारे दिखते हुए भी
नही दिखते,
उसके लिए सारा दृश्य-चित्र एक का एक है,
यह और वह, दोनों किनारे, एक ही हैं  
-अरुण  

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