स्वयं परमात्मा का स्वबोध



मन की सक्रीयता 
हो जाए शून्यवत
और तन का बोध
जग जाए ब्रह्माण्डवत
तो ऐसी प्रतीति
स्वयं परमात्मा के 
स्वबोध से भिन्न नही
-अरुण

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