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Showing posts from February, 2013

सपनों भरी है जिन्दगी

दिन के सपने रात के सपनों पे हंसते हैं और फिर कब नींद से जा मिलेते हैं -   इसका उन्हें पता ही नही, रात और दिन की इस सपनों भरी जिन्दगी ने सपनों के बाहर क्या है इसे कभी जाना ही नही है -अरुण      

दृश्य, दर्शन और दर्शक

दृश्य का स्पष्ट दर्शन पाने वाला दर्शक स्वयं के प्रति सोया होता है, स्वयं पर ध्यान ज़माने वाला, दृश्य पर सो जाता है. दृश्य और दर्शक दोनों पर एक साथ जागनेवाला ही दृश्य, दर्शन और दर्शक – तीनो के बीच का भेद पूरी तरह खोकर सृष्टि के एकत्व को देख लेता है -अरुण      

सत्य-खोज की विशेषता

सत्य की खोज का हल या तो पूरा का पूरा गलत है या पूरा का पूरा सही, क्योंकि जो मूर्छित है - पूरा का पूरा ही मूर्छित है और जो जाग गया –वह पूरा का पूरा ही जागा है -अरुण  

हम खुद ही हैं रूकावट

भगवान खोजने या पाने की चीज नही, होने की चीज है. वैसे तो हम भगवान हुए ( Being ) ही हैं पर अपनी ही रूकावट के कारण इसका बोध नही कर पा रहे -अरुण

यह अभिव्यक्ति का अभियान

अंधेरों से जुड़े हैं प्राण उजाला चाहता हूँ सपने बदल बदल कर जागना चाहता हूँ ये परस्पर विरोधी प्रयास चलेंगे जब तक, चलेगा अभिव्यक्ति का यह अभियान तबतक -अरुण