हम एक साथ जी रहे है दो जगतों में


दो जगतों में हम एक साथ जी रहे हैं
एक है ‘मै-तू’ का जगत यानि
यह प्रापंचिक संसार
और दूसरा है
केवल मै या केवल तू का जगत
जिसमें सबकुछ मै ही (अहम् ब्रह्मस्मि भाव) या
सबकुछ तू ही (परम-आत्मभाव) का जीवन है,
कोई अहम् भाव शेष नही बचता
परन्तु संसार में जीने वाले को दूसरे जगत का कोई
पता नही होता क्योंकि संसारी उस जगत में होते हुए भी
उसओर उसका ध्यान नही होता
-अरुण

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