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Showing posts from January, 2013

अस्तित्व आकाश में, चित्त धरती पर

असीम विराट आकाश में हर पल हर क्षण उड़ता हमारा आत्म-पक्षी धरती पर पड़े सड़े-गले मुर्दों पर ही अपने मन-चक्षुओं को गडाए हुए है, उन्हीं में रममाण है, इससे जब उसका मन ऊब जाता है तब धरती की ओर ही नजर टिकाये हुए वह आकाश को खोजने लगता है -अरुण     

हम हैं एक जिन्दा और स्वाभाविक कौम

भारत है एक जिन्दा-स्वाभाविक देश. यहाँ की जनता अपनी देशभक्ति का बखान न करते हुए बड़े ही स्वाभाविक तौर पर देश से भावनिक जुडाव रखती है. हाँ, जनता में कुछ ऐसे हैं, जो अपनी देशभक्ति का नगाड़ा पीटते हुए   दूसरों की इमानदारी पर शक करते हैं,    उनसे देशभक्ति का सर्टिफिकेट माँगते रहते हैं. ऐसे लोगों को नजरअंदाज करना ही बेहतर, क्योंकि इतने बड़े देश में कुछ तो ऐसे बीमार होंगे ही. परन्तु गंभीर बात तो यह है कि ऐसे बीमार लोगों की हरकतें जब बहुत उजागर और अति हो जाती हैं तो उन्हें देखकर   हमारे पड़ोस में बसे अहितैशी लोग हमारे में फूट डालना शुरू कर देते हैं. ऐसे अहितैशीयों से बचकर ही रहना होगा -अरुण                            

कुछ और नही ...

जब जब भी देखा सागर को बस लहर दिखी, कुछ और नही शब्दों का सागर ‘लहर’ मिटे सागर देखा, कुछ और नही -अरुण टुकड़ों को देखो तो पूर्ण दिखाई नही देता. शब्द पूर्ण के लिए भी और अंश के लिए भी होते हैं, शब्दों का ज्ञान अंश पर नजर स्थिर कर देता है और इसतरह देखने (perspective) के अंदाज को ही बदल देता हैं परिणामतः   मनुष्य का बोध-चित्त भ्रमित हो जाता है. -अरुण  

अपने प्रिय मित्र को जबाब में लिखी पंक्तियाँ

मित्र ने सलाह दी थी – “अच्छा लिखते हो, रचनाओं को प्रकशित कर लोगों के सामने क्यों नहीं लाते ?”. शायद उसकी यह धारणा हो चुकी है कि मुझमें प्रसिद्धी की चाह नही है... मैने अपनी अजीबोगरीब उलझन को सामने रखने की कोशिश की है. ----- मशहूर होने की नही ख्वाहिश कहूँ तो झूठ कहता हूँ, लिख्खा मेरा पढ़ ले कोई यह चाहकर मै ब्लॉग लिखता हूँ क्योंकि यही सबसे सरल तरीका है अपने को प्रकाशित करने का और जो अन्य जरिये हैं उनके प्रति उदासीनता है, क्यों है ? शायद मेरी ही कुछ अंदरूनी कमजोरियां या   कन्फ्यूजन जिम्मेदार हैं ... मेरा दूसरा गंभीर दोष यह है कि – ..... होती नही इच्छा पढूं मै दूसरों ने क्या लिखा है जबकि दूसरों के पास है साहित्य प्रतिभा और उन्होंने बहुत अच्छा लिख्खा है       उनके भी हैं कई विषय, कई विचार हैं, उनकी भी प्रभावी-अभिव्यक्तियाँ है, उनकी हैं अपेक्षाएं निश्चित कि उनको पढ़ा जाए और उन्हें अभिप्राय मिलें ...... परन्तु .... यह सब अच्छी तरह जानते हुए भी मै केवल अपनी सोच और अपनी कलम इन दोनों के साथ ही अपने को जोड़े हुए हूँ. मेरी यह अक्षम्य मन