पशु और मनुष्य



पशु जो भी करता है
ठीक ही होता है,
परन्तु मनुष्य
अपनी पशुता को
‘ठीक होने का’ दर्जा देने के लिए
तर्क या बुद्धि या विवेक का
सहारा जुटा लेता है
और इसीलिए शायद
मनुष्य को विवेकी पशु कहते हैं
-अरुण    

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