हमें होश तो है पर होश का होश नहीं



‘मैं हूँ’ –
इस बोध को हम
चेतना या चैतन्य कहते हैं,
इसी बोध या जानकारी को केंद्र में रखकर
सारी जानकारियाँ बनती और संचालित
होती रहती हैं
यह ‘निरंतर संचालन’ ही जीवन जान पड़ता है
जो जीवन ‘मै हूँ’ के बोध की
निर्मिती और गति को आकार  देता है
उस जीवन का होश ही नहीं है
इसतरह हमें होश तो है पर
होश का होश नहीं
-अरुण    

Comments

Anonymous said…
अच्छा लिखा है.. मन खुश हुआ

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