मन से दूर- मंदिर


मन से दूर गया, मंदिर पहुँचा
जग से दूर न कहीं राह कुई जाती है
जग-मन की इस गुत्थी को जो समझ ले
उसे जीस्त समझ आती है
-अरुण

Comments

Popular posts from this blog

मै तो तनहा ही रहा ...

यूँ ही बाँहों में सम्हालो के