भाषा की गुत्थी


निष्काम भाव से कर्म करो, फल की आशा मत रखो
यह वाक्य कई बार कहा जाता रहा है.
परन्तु इस वाक्य में एक स्वाभाविक गुत्थी है जो इस वाक्य के आशय को
भ्रष्ट कर देती है, और इस कारण आशय ठीक ठीक समझा नही जाता.
वास्तव में,  कर्म करो- इस कथन में तुम करो, तुम्हें करना है, तुम करनेवाले या
कर्ता हो ऐसी सलाह नही है क्योंकि निष्काम का अर्थ है कि तुम कर्ता हो ऐसा भाव न रखते हुए कर्म होने दो. यदि ऐसा भाव (निष्काम भाव) सघनता के साथ होगा तो स्वभावतः ही फल की आशा का अभाव होगा.
-अरुण           

Comments

सदा said…
‘तुम कर्ता हो’ ऐसा भाव न रखते हुए कर्म होने दो. यदि ऐसा भाव (निष्काम भाव) सघनता के साथ होगा तो स्वभावतः ही फल की आशा का अभाव होगा.
बेहद सटीक बात कही है आपने ... आभार

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