हम भ्रम को आधार बनाकर जी रहे हैं


हिंसा चाहे अहिंसक बनना,
बन नही सकती
अँधेरा चाहे प्रकाश बनना
बन नही सकता  
............
ऐसे दो छोरों के बीच,जिनका
न कोई आरंभ हो या अंत,
हमेशा प्रकाश ही प्रकाश है,
प्रकाश निर्विचार का,
प्रकाश (भूत-भविष्य और वर्तमान जैसे)
विभाजन विरहित समय का.

ऐसी चिरंतन प्रकाश-अवस्था में
जब विचार या विचार-गति का अधेरा
चलने लगता है,
विभाजनयुक्त समय (या मनोवैज्ञानिक समय)
का भ्रम सक्रीय हो जाता है
ऐसे भ्रम ही हमारे जीवन के
आधार बन चुके हैं
-अरुण       

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