एक सूतभर भी उसकी नही


मेरी यह छोटीसी जिंदगी,
मेरे अपने तजुर्बे गिने चुने है
ढेर सारे दूसरों से लेकर बुने हैं
ये इकठ्ठा जमा तजुर्बे ही
मेरी शख्सियत है
कैसे कहूँ इसे कि
यह मेरी व्यक्तिगत है
अब समझा कि यहाँ अपना
व्यक्तिगत कुछ भी नही
परछाई जितनी भी चाहे
जमीन घेर ले
एक सूतभर भी उसकी नही
-अरुण    

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