यह ‘मै’ ही अमुक्ति है


अबतक के अनुभवों की सारी बीती, सारा इतिहास
जी रहा है भीतर हमारा मन बनकर,
इस मन से ही उभरकर और
फिर इस मन को ही
संचालित करता
मै बनकर
यह मै ही अड़चन है
मुक्ति के मार्ग में
क्योंकि यह मै ही अमुक्ति है
-अरुण
       

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