दोहरा आचरण


आदमी में समझ भी है
और समझ से भागने की प्रवृत्ति भी,
बैसे ही उसे अपनी मूर्खता का तो
परिचय है पर वह इसकी जिम्मेदारी
बाहरी तत्वों पर थोपने की
प्रवृत्ति का भी शिकार है.
जबतक आदमी में अपने
स्वतंत्र अस्तित्व के होने का
मोह बरक़रार है
आदमी के इस दोहरे आचरण का
कोई इलाज नही
- अरुण     

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