जर जर शरीर पर्वत का क्यों?


कसक, वेदना, विरह, कष्टसे
भींगे नैन, कुंठित स्वर, जर जर शरीर
पर्वत का क्यों ?
क्योंकि
सरिता ने देकर मधुर प्रेम
स्मृतियाँ कितनी, सहवास तृप्त और
वचन अनेक-
आघात किया, खोया विश्वास,
कपट किया और
स्वार्थ भरे उर से पर्वत को छोड़,
सागर को प्रस्थान किया
-अरुण

Comments

Popular posts from this blog

मै तो तनहा ही रहा ...

यूँ ही बाँहों में सम्हालो के