मै एक झकोरा – ढूँढ रहा हूँ ........


पीपल के अनगढ पत्ते ने ना खोज कभी की पीपल की
मै एक झकोरा ढूँढ रहा हूँ घना बवंडर गीता में

वह लहर कभी ना नाप रही सागर की सीमा रेखाएं
स्वर हँसे तार पर वीणा के, वीणा की मौनभरी आहें
विस्तीर्ण अखंडित गगन मगर, खंडित परमात्मा गीता में
मै एक झकोरा ढूँढ रहा हूँ घना बवंडर गीता में

यह खोज महज शब्दों की है शब्दों का बोझ बड़ा भारी
शब्दों ने गाया शब्दों को अर्थों की दुनिया दूर धरी
उस मूल अर्थ को कैसे सुन पाओगे, शाब्दिक गीता में
मै एक झकोरा ढूँढ रहा हूँ घना बवंडर गीता में

निर्मल लय को ढक देती है कविता के शब्दों की काया
दुहराता हूँ हर बार मगर शब्दों से निकल नही पाया
उस शुद्ध स्थिति पर खड़े हुए हैं, भवन श्लोक के गीता में
मै एक झकोरा ढूँढ रहा हूँ घना बवंडर गीता में
-अरुण

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