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Showing posts from December, 2011

नये वर्ष (२०१२) की शुभकामना

असीम अनंत आकाश आदमी ने बटोरा सिर्फ एक मुठ्ठी भर आकाश और उसपर भी खींच दी कई छोटी बड़ी काल्पनिक रेखाएँ और उनके बीच की अलग अलग दूरियों को अलग अलग नाम दिए ये नाम हैं सेकण्ड- घंटा – दिन – सप्ताह महिना-साल-दशक-शतक आज इसी मुठ्ठीभर समय आकाश का एक वर्ष (२०११) समाप्त होने जा रहा है कल होगा एक नये वर्ष (२०१२) का आगमन परन्तु सभी को उस असीम अनंत आनंद की झलक मिल जाए – यही शुभकामना ..................................................... अरुण

एकत्व का पुनर्जागरण

मनुष्य का मूल स्वरूप है उसका अस्तित्व के साथ एक्त्व इसी एक्त्व में रहकर वह प्राणों के माध्यम से सजीव बना रहता है परन्तु उसकी सजीवता जब समुदाय संवाद के लिए प्रवृत्त होती है, उसकी चित्तता में भेद फलने के कारण व्यक्तित्व और समाज जैसा द्वैत अपने मायावी स्वरूप में सजीव हो उठता है इसी द्वैत-लिप्त चित्त में हमारी सजीवता एवं मूल एकत्व संकुचित हो गया है चित्त में एकत्व के असंकुचन एवं पुनर्जागरण के लिए समाधी ही एक उपाय है ............................................... अरुण

चेतना सागर

चेतना सागर में उछलती लहरें..... एक लहर ने पीछे से धकेला तो दूसरी उभरी अपना अहम पहने और अब अपने आगे चलती सभी लहरों को वह स्वयं का करतब समझती है, भुलाकर कि उसका कोई अहम नही केवल अस्तित्व ही है चेतना सागर में तैरता हुआ ....................................... अरुण

उर्जा और विचार प्रवाह

विचार-प्रवाह से जुडकर मेरी उर्जा बह रही है मेरी उर्जा के प्रवाह पर विचार तैरने लगें, तो क्या ही अच्छा हो ..................................................................... अरुण

सत्यान्वेषक

धरा वास्तविक है आकाश भी वास्तविक है परन्तु दोनों का मिलन-स्थल तो केवल भ्रम मात्र है यह भ्रम क्यों और कैसे फलता है इस बात का खोजी सत्य का अनुसंधानक है जो लोग धरा और आकाश का अनुसंधान करते है वे वैज्ञानिक कहलाते हैं देखा यह गया है कि वैज्ञानिक सत्यान्वेषक को समझना चाहता ही नही जबकि सत्य का अनुसंधान-कर्ता वैज्ञानिक पद्धति के साथ ही आत्म-संशोधन की कला को भी अपनाता है वह विज्ञान को निरर्थक नही मानता ........................................................... अरुण

नया मसीहा - एक नए संकट की संभावना

बातें उसकी बहुत ही उम्दा ऊँची लगती लगता के कोई मसीहा ही उतर आया हो पर जिसतरह वह जिद का वह इजहार करे मानो बच्चे में कुई बुजुर्ग उतर आया हो अपनी हर बात को वह जनता की बात कहता है और यही बात तो भीड़ जुटाने के लिए है काफी उसमें सादगी भी है, भा जाती है सभी को बहुत पर क्या यह सादगी भरोसे के लिए है काफी ? ये सादगी, ये भीड़ और ये शोरोगुल सभी दिशाओं से संभ्रम बयार बहती है अजीब दांव पेंच और हडबडाहट का है माहोल किसी नये खतरे की अब धुन सुनाई देती है अब यही वक्त के राजनीति दिखाए सुनीयत अपनी मौका परस्ती को दे दे पूरा तलाक देश के हित में जो बात हो उसी को पकड़ सामना करती रहे जो भी आ जाएँ हलात ................................................... अरुण

लोकपाल कैसे उगाओगे ?

पेड तो बबूल का है आम कहाँ से पाओगे धरा भ्रष्ट, गगन भ्रष्ट है लोकपाल कैसे उगाओगे ? ...................................... अरुण

दार्शनिक सत्य-बोधी नही होते

सत्य का बोध बिलकुल ही direct है यह किसी भेदाभेद और तुलना, किसी माध्यम, किसी जानकारी या विश्लेषण, तथा काल-विभाजन के बिना होता है इन सब बातों की जरूरत सत्य का वर्णन, सत्य पर चर्चा-प्रवचन, सत्य का ज्ञानकोष निर्माण करने आदी बातों के लिए होती है ये बातें सत्यबोध की दृष्टि से बिलकुल ही irrelevant हैं दार्शनिक सत्य-बोधी नही होते ........................................ अरुण

माया भी अस्तित्व का ही हिस्सा होगा

जिसका कोई अस्तित्व नही फिर भी ‘ अस्तित्व है ’ ऐसा जान पड़े तो इसे माया का प्रभाव समझा जाता है मनुष्य ही नही सभी प्राणी मात्र माया के प्रभाव में हैं कबूतर अपने दिये अन्डो की सुरक्षा की फिक्र करता उन्हें कौओं से बचाता हुआ देखा जाता है ऐसा इसीलिए कि उसे भी अपने अण्डों के प्रति ममत्व होता है यह ममत्व, ऐसी माया शायद प्रकृति ने ही अपनी सुरक्षा हेतु जीवों में जगाई है माया भी अस्तित्व का ही हिस्सा होगा ........................................... अरुण