अर्ध-नींद या अर्ध-जागृति

जानने की इतनी आदत

लग गई है कि

जागना ही भूल बैठा हूँ

जानने के लिए जितना जागना जरूरी है

उतना ही जागता हूँ और

शेष जागृति को

जानने की प्रक्रिया में ही गवां देता हूँ

जानने की प्रक्रिया में ही जाननेवाला भी

प्रकट हुआ जान पडता है और फिर

जानने की शृंखला अविरत चलती रहती है

जागृति को अर्ध-नींद या अर्ध-जागृति में रख्खे हुए,

नींद के ही दो दूसरे नाम हैं

अर्ध-नींद और अर्ध-जागृति

................................................ अरुण

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