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Showing posts from November, 2011

अनुभव अपने आप में नया फिर भी मन के लिए पुराना ही

आयु के अपने बीते वर्षों के हर दिन, हर दिन के हर घंटे, हर घंटे के हर पल के अनुभव-संग्रह से फली समझ से, यह मन बना है और अब इसी समझ के अनुसार अपने नये अनुभव बटोरता जा रहा है...... और इसीलिए हर अनुभव अपने आप में नया होते हुए भी मन के लिए पुराना ही है ........................................ अरुण

मूर्तियों से मांगना

तुम्हे पूछूं तो शायद तुम न सुनो, तुमसे मांगू तो तुम शायद मेरी मांग पर प्रतिप्रश्न पूछ बैठो इसीलिए मूर्तियों से पूछता हूँ, उन्ही से मांगता हूँ ताकि वे वही कहें जो मै चाहता हूँ ......................................... अरुण

अधूरी खबर

हमें खबर है हम चाहते क्या हैं हमें खबर है हम सोचते क्या हैं पर क्यों चाहते हैं ऐसा, क्यों सोचते हैं ऐसा इस बात से हैं बेखबर ......................................... अरुण

जो सुलझा पाए उन्ही को दर्शन

विश्वास के गर्भ में अनसुलझे संदेह अनसुलझों का पड़ाव है-विश्वास जो सुलझा पाए संदेहों को - उन्ही को दर्शन बाकी करें, सिर्फ प्रदर्शन ......................................... अरुण

आम नही, ना खास हुआ

' मेरा '- ' अपना ' इन शब्दों की नही कुई गुंजाईश इक तिनका भी इस दुनिया का आम नही, ना खास हुआ ......................................... अस्तित्व एक भी तिनके का कोई भी मालिक नही है यह अस्तित्व सब का है और किसी का भी नही ....................................................................... अरुण

लफ्जों की आपसी गुफ्तगूँ

सारा इतिहास लफ्जों की शक्ल में ढल जाता है लफ्जों की आपसी गुफ्तगूँ, आदमी में जेहन उभर आता है .............................................. क्षण क्षण के अनुभव-कणों से स्मृति ढलती है स्मृति के इन कणों के पास आपस में ही संवाद करने का कुदरती इल्म है इसी सतत के संवाद में आदमी उलझा हुआ है ..................................................... अरुण

विचारों की गिरफ्त

मुझको लगता के कुई बोल रहा है भीतर जब के भीतर है सिर्फ आवाजे खयाल .............................................. एक ऐसी मूलभूत गलत फहमी है जिसके हम सभी शिकार हैं. भीतर मन में, विचारों की आवाज सुनकर ऐसा लगता है कि वहाँ भीतर बैठकर कोई बोल रहा है जो मन और विचारों की असलियत को पल पल देख रहा है, वह मन की गिरफ्त से मुक्त है ..................................................... अरुण

सच नही है चीज

चीज है गर, बेचनेवाला भी है, बाजार भी सच नही है चीज, ना ही बिक सके बाजार में .............................................. सच कोई चीज नही है और इसी कारण कोई किसी को न तो दे सकता है और न ही बेच सकता है मजाक तो यह है कि सच को मंदिरों और सभी धार्मिक पूजा स्थलों से बेचनेवाले पंडित, मौलवी, पादरी.. हमेशा ही मौजूद रहे हैं और सच को खरीदने वाले ग्राहकों की भी कोई कमी नही ........................................................ अरुण

इन सवालातों से हटकर.....

सामने दो राह उनमें कौन से मेरी हुई इन सवालातों से हटकर है, जो चोटी पर खड़ा .................................. नीतिमत्ता के प्रश्न संसार के व्यापार में उलझे हर बंदे के लिए हैं जिसने संसार से उबर कर पूरी वास्तविकता का भान रख्खा उसका हर कदम उचित ही होगा ................................... अरुण

आदमी बस आदमी से डर रहा है

इजादे जेहन का मकसद आदमी को जानवर के खौफ से महफूज रखना हाय, ये क्या हुआ अब आदमी बस आदमी से डर रहा है ……………………………… उत्क्रांति के क्रम में कुदरत ने आदम-जाती को अपनी सुरक्षा और जीवन जीने की सुविधा के लिए मन नाम का एक यंत्र उसेक भीतर उगाया परन्तु हुआ यूँ की आदमी आदमी से है डरने लगा, सीमायें गढ़कर रहेने लगा, सीमा बाहर के लोगों से हमेशा डरा हुआ, उनसे लड़ने की व्यवस्था से ही जुड़ा हुआ. इस तरह मन जीने का नही, कुछ रचने का नही बल्कि मरने और मारने का साधन बन कर रह गया ................................................ अरुण

एक शेर

जमीं पे पांव रख्खे ही नही, और दौड पड़ा मंजिल की ओर न मंजिल मिली, न रास्ता कटा, बस वक्त कट कर रह गया ........................................ अरुण

अर्ध-नींद या अर्ध-जागृति

जानने की इतनी आदत लग गई है कि जागना ही भूल बैठा हूँ ‘ जानने ’ के लिए जितना जागना जरूरी है उतना ही जागता हूँ और शेष जागृति को जानने की प्रक्रिया में ही गवां देता हूँ जानने की प्रक्रिया में ही ‘ जाननेवाला ’ भी प्रकट हुआ जान पडता है और फिर जानने की शृंखला अविरत चलती रहती है जागृति को अर्ध-नींद या अर्ध-जागृति में रख्खे हुए, नींद के ही दो दूसरे नाम हैं अर्ध-नींद और अर्ध-जागृति ................................................ अरुण