The Joy of Living Together - अध्याय २ - दुःख और आपदा (भाग १)

मनुष्य समाज कई समूहों और संगठनों में बट गया है, हमारे दुःख के कारणों में यह एक महत्वपूर्ण कारण है एक समूह अपने मंदिर को बड़ा समझता है तो दुसरे के लिए मस्जिद उसके गर्व का स्थान है किसी को अपने हिंदू होने का गर्व है तो दूसरा मुस्लिम धर्म को ही सच्चा धर्म मानकर जीवन जी रहा है परस्पर विरोधी श्रद्धाओं और दुराग्रहों के कारण घृणा और वैमनस्य का माहोल उभर आया है

मनुष्य, मनुष्य होने की अपनी मूल पहचान को भूलकर वह अपनी गौण पहचानों को ही अधिक महत्त्व देता दिखता है, इसका कारण है उसकी मंद-मति, जिसके प्रभाव में रहकर ही वह अपने जीवन जी रहा है इसी कारण समाज में इतनी असहिष्णुता और असुरक्षा विद्यमान है धरम के नाम पर खुनखराबा होता आया है और ऐसे हालात में मनुष्य दुःख के साये में न दिखे तो ही आश्चर्य होगा

सभी जागे हुए महात्माओं ने वर्तमान में ही ठहरते हुए गत और भावी को समझने की बात कही परन्तु अनुकरण करने वालों ने वर्तमान से हटकर गत और भावी में ही विचरते हुए, (विचार करते हुए) महात्माओं की बात समझ आ गयी ऐसा मान लिया जो बात spiritual या आत्मिक हो उसपर किसी भी धर्म की स्थापना संभव नही है परन्तु सभी तथाकथित धर्मों ने इसी असंभव को संभव बनाने का प्रयास किया है यही कारण है कि समाज में धर्म तो है परन्तु आदमी धार्मिक नही है ......... क्रमशः आगे अध्याय २ (भाग २)

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