The Joy of Living Together - अध्याय १ (अंतिम भाग ८)

क्रमशः………मनुष्य निर्मित धर्म (Man Made Religions)
बुद्ध ही की तरह क्राइस्ट ने भी किसी धर्म-स्थापना की बात कभी नही सोची थी उनके चले जाने के बाद, अनुयायियों ने क्रिश्चन धर्म की स्थापना की मंदबुद्धि लोग ही ऐसा करते हैं क्योंकि वे गत-काल पर आधारित सोच के इर्द-गिर्द अपनी काल्पनिक सुरक्षा के लिए धर्म जैसी संस्था बनाने के लिए प्रेरित हो जाते हैं इसतरह बिना जाने वे बीते की गुलामी स्वीकारते हैं उनके प्रेरकों ने भले ही जीवंत समय में जीने की बात कही हो, पर अनुयायी तो अपनी मंद-बुद्धि की समझ के कारण गत-काल की गुलामी में ही अपने को सुरक्षित महसूस करते नजर आते हैं अनुयायिओं की समझ में इस तरह की गलती घटने का कारण है, अपने प्रेरक की बातों को सीधे और शुद्ध ढंग से सुनने की उनकी असमर्थता बात को सुनते समय अपने पूर्व संचित ज्ञान के माध्यम से नई बात को सुनी जाने के कारण ही ऐसी भूल हो जाती है यानी चुंकि बात असावधानी की अवस्था में सुनी जाती, बात समझने में भूल होना स्वाभाविक ही है सभी मनुष्य-निर्मित धर्म ऐसी ही भूलों के परिणाम हैं मानव मस्तिष्क को स्मृति या Memory की सुविधा प्राप्त है परन्तु यही सुविधा अंतिम-यथार्थ को समझने के मार्ग में एक बहुत बड़ी अड़चन है स्मृति चित्त को गत काल की ओर खींच ले जाती है और इस कारण वर्तमान या जीवंत समय का अनुभव होने से पहले ही गत-काल समय को अपनी पकड़ में ले लेता है और इस कारण मनुष्य जीवंत को जानने की अपनी स्वाभविक क्षमता का उपयोग ही नही कर पाता सकल मस्तिष्क प्रक्रिया के प्रति जो क्षण-क्षण सावधान हो उसी का चित्त सभी गत-वृत्तियों से मुक्त रह सकेगा

बच्चों को इस बारे में सजग करने की आवश्यकता है इस तरह की समझ जगाने वाली बातों का भी हमारी शिक्षा-व्यवस्था में समावेश हो जाए तो आनेवाली पीड़ी के लिए बहुत ही अच्छा होगा

अध्याय समाप्त

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