तात्पर्य गीता अध्याय १४

सत् रज तम के त्रिगुण से कैसे होऊं पार /
‘स्व-शरीर मेरा नही’ धर यह भाव अपार //

सत् सागर में डूबना, बनकर सागर नीर /
यही भक्ति का सार है, यही भक्त का तीर //
………………………………………… अरुण

Comments

Popular posts from this blog

मै तो तनहा ही रहा ...

यूँ ही बाँहों में सम्हालो के