तात्पर्य गीता अध्याय ५

देह-मग्न के हाँथ से जो भी घटता काज /

काज भिन्न गुण-धर्म जब आत्म-मग्न के हाँथ //

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चहुँ फैले आकाश में, अंदर बाहर धूप /

अहंकार आकाश को देत रहे इक रूप //

................................................ अरुण

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