हर क्षण-स्वर

नदी बहती है

किनारे भी बहते हैं

साथ जीवन क्षण-धारा के

सांसो के तट भी बहते हैं

जो बीता बीत गया वर्तमान शेष रहा

आने वाले का आभास महज शेष रहा

चलती सांसों की ही धरती पर जीवन है

बीते की- आते की- स्मृति लिए जीवन है

यह जीता समय काल उसका ही मंदिर घर

उसके मंदिर से ही उठता है हर क्षण-स्वर

................................................ अरुण

Comments

Popular posts from this blog

मै तो तनहा ही रहा ...

यूँ ही बाँहों में सम्हालो के