ध्यानमयता

हर क्षण में होता

हर परिवर्तन,

अपने आप में

एक घटना है

परिवर्तन के साथ ही

पुरानी घटना मरती और

और नई जन्मती है

हर मरती घटना अपना एक चिन्ह

छोड़कर जाती है,

घटना नही बचती

पर चिन्ह या प्रतिक के रूप में

बनी रहती है

स्मृति भी जम गई परछाइयों के रूप में

एक चिन्ह बन कर मस्तिष्क में

पुनर्जीवित होती रहती है

इन्ही पुनर्जीवित होते चिन्हों को

मन घटना समझ लेता है और

तभी भ्रान्ति या माया का पौधा

फल कर वृक्ष बन जाता है

जीवन इन भ्रांतियों से संचालित न हो पाए

इतनी सावधानी रखना ही

ध्यानमयता हैं

....................................... अरुण

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