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Showing posts from June, 2011

हर क्षण-स्वर

नदी बहती है किनारे भी बहते हैं साथ जीवन क्षण-धारा के सांसो के तट भी बहते हैं जो बीता बीत गया वर्तमान शेष रहा आने वाले का आभास महज शेष रहा चलती सांसों की ही धरती पर जीवन है बीते की- आते की- स्मृति लिए जीवन है यह जीता समय काल उसका ही मंदिर घर उसके मंदिर से ही उठता है हर क्षण-स्वर ................................................ अरुण

इक अनंत सागर है

नदी बहती है किनारे भी बहते हैं साथ जीवन क्षण-धारा के सांसो के तट भी बहते हैं गंध मधुर बिखराते सुमनों सा यह जीवन प्रेम सुरस पसराते सुजनों सा यह जीवन जीवन यह करुणा है जीवन है प्रेमभाव जीवन के सागर में जीवन की चले नाव उसमें ही प्रेम सकल भरी हुई गागर है उसमें ही करुणा का इक अनंत सागर है ................................................ अरुण

टुकड़े से लिपटा है

नदी बहती है किनारे भी बहते हैं साथ जीवन क्षण-धारा के सांसो के तट भी बहते हैं खींच कर रेखाएँ बाँट दी सारी धरती इधर की प्राण-प्रीय उधर की पराई सारा का सारा यह जगत का पसारा यह उसका ही घर है यह सारा का सारा यह टुकड़ों में जो सोचे टुकड़ों में बंटता है सारे को छोड़ व्यर्थ टुकड़े से लिपटा है ...................................... अरुण

सब उसी का तो है

नदी बहती है किनारे भी बहते हैं साथ जीवन क्षण-धारा के सांसो के तट भी बहते हैं तूफानी हवा पर उडता पत्ता और उसपर खड़ा यह जीव जो व्यर्थ ही परेशान है अपनी सुरक्षा को लेकर यह तूफान भी उसी का, पत्ता भी उसी का और यह छटपटाता जीव भी उसी का तो है ...................................... अरुण

अहंकार – स्पष्ट और सुप्त

कहतें हैं कि अहंकार सुप्त या स्पष्ट स्वरूप में सब में ही होता है राजा को अपनी सत्ता का तो आश्रम में रहने वाले को अपने भक्तों की बढती संख्या का ................ देश में चल रही आज की घटनाओं में भी जीवन का यह सत्य दिख जाता है ..... राज्य पर बैठे तो राज्य-सत्ता की मस्ती में हैं ही परतु सत्ता को झुकाने का दावा करनेवाले बाबा और अन्ना का व्यवहार भी उनके सुप्त अहंकार को (उनकी देह-भाषा और वक्तव्यों द्वारा) उजागर कर ही देता है खैर, इतना तो राजनैतिक प्रसंग में चलता ही हैं .............................................. अरुण

एक निरंग धरातल

इस स्वच्छ स्वस्थ निर्मल निरंग धरातल पर पिछला इतिहास और अगला आभास प्रक्षेपित है एक चल-चित्र की तरह चलते चित्रों की गति को ही मिल गया है एक प्रति-अस्तित्व और अब धरातल के सारे प्राण हिलते और डोलते मालूम पडतें है इसी प्रति अस्तित्व की धुन पर ....................................... अरुण

काया, माया और छाया

मन है अस्तित्व को पहचाननेवाला काया (तन) है अस्तित्व का ही अभिन्न अंग मन है काया से फलनेवाली माया सामाजिक मनाधीन बसा मनुष्य का जीवन उसी माया की छाया में विचरती काया है ........................................ अरुण

मीडिया भी ध्यान में रखे

भ्रष्टाचार के विरोध में जन-मन के भीतर दबा गुस्सा सत्याग्रहों के माध्यम से प्रगट हो रहा है. इस पूर्व- संकेत का उपयोग राजनीतिज्ञ और समाज-प्रतिनिधि, दोनों ही किस तरह से करते हैं यह देखनेवाली बात होगी दोनों की यह जिम्मेदारी है कि लंबे समय में जनता के हित में कैसा बदलाव श्रेयस्कर होगा इस पर गंभीरता से चिंतन करें और इसके बाद ही किसी निर्णय और एक्शन का उपयोग करें गुस्साई जनता को इससमय जो प्रेयस लग रहा है उसी को आधार बना कर किसीभी कारवाई तक पहुँचना जनता के हित में न होगा, - यह बात दोनों के साथ साथ मीडिया भी ध्यान में रखे ........................................ अरुण

मानसिक प्रदूषण

आदमी की साँस तो ताजी है पर साँस लेता यह आदमी अपने हर जीते क्षण में पुराना ही है क्योंकि उसके हर बीते क्षण में ही उसके प्राण जी रहे हैं .............. प्राण पुराने- सिर्फ साँस नई और इसतरह हर नई साँस प्रदूषित है आदमी के इतिहास द्वारा, उसकी स्मृति द्वारा ...................................... अरुण

कोई भी पूर्ण समाधानी नही

प्रकाश सर्व-व्याप्त हो, हर कोने तथा आड की जगहों में भी ठसा ठसा भरा हो, तो अँधेरा चुबने का सवाल ही नही उठता परन्तु प्रकाश यदि अधूरा और फीका फीका सा पसरा हो तो अँधेरे की चुबन पीछा न छोड़ेगी ................... जिंदगी शायद ऐसे ही मध्यम धीमे, अस्पष्ट और फीके प्रकाश में गुजरती है कोई भी पूरी तरह, पूरे समय, पूर्ण समाधानी नही है किसी न किसी चुबन से बेचैन है ..................................... अरुण

वस्तु एवं अस्तु

जिसे विचार ने रचा है वह है वस्तु मनुष्य निर्मित हर एक चीज, भाषा संकल्पना, मापन, मूल्य एक वस्तु मात्र है चाँद, तारे, पृथ्वी, माटी, पेड पौधे पक्षी प्राणी ..... ये सब हैं अस्तु यानी सच्ची वास्तविकता काल्पनिक वास्तविकता नही ..................................... अरुण

ध्यानमयता

हर क्षण में होता हर परिवर्तन, अपने आप में एक घटना है परिवर्तन के साथ ही पुरानी घटना मरती और और नई जन्मती है हर मरती घटना अपना एक चिन्ह छोड़कर जाती है, घटना नही बचती पर चिन्ह या प्रतिक के रूप में बनी रहती है स्मृति भी जम गई परछाइयों के रूप में एक चिन्ह बन कर मस्तिष्क में पुनर्जीवित होती रहती है इन्ही पुनर्जीवित होते चिन्हों को मन घटना समझ लेता है और तभी भ्रान्ति या माया का पौधा फल कर वृक्ष बन जाता है जीवन इन भ्रांतियों से संचालित न हो पाए इतनी सावधानी रखना ही ध्यानमयता हैं ....................................... अरुण

आत्मा इंसान को जाने पर ......

रूह को इन्सानियत का हर तजुर्बा हो रहा फिर भी इंसा ढूंढता है रूह को जिस्तो जिगर .......... मतलब – We are not human beings having Spiritual experience We are spiritual beings having Human experience ……………………………. अरुण

दूसरी कोख यानी दुनियादारी

जिस तरह माँ की कोख से बाहर आने के बाद मनुष्य माँ के जगत यानी दुनियादारी से जुड जाता है वैसे ही दुनियादारी के कोख से जो मनुष्य निकल पाया वह आत्मा के जगत यानी परमात्मा से जुड गया दोनों ही स्थितियों में उसे किसी कोख से मुक्त होना है परन्तु दुनियादारी की कोखसे बिरले ही मुक्त हो पाते हैं ........................................... अरुण

छोड़ दोगे गर किनारे.........

छोड़ दोगे गर किनारे जिंदगी बह जाएगी जिंदगी के दांव पर तो जिंदगी लग जाएगी ;;;;; पन्ना पन्ना जल गया किस्सा पुराने वक्त का खाक को दर से हटाते जिंदगी कट जाएगी ... खुद को बहलाने चला आया इसी बाजार में क्या पता था मुझको मेरी जिंदगी बिक जाएगी ........ इक खयाली गुल खिलाना रेत की दीवार पर कौन देगा ये भरोसा, जिंदगी खिल जाएगी ..... जिस तरह हर राह पर परछाइयाँ पाती सुकून बस उन्ही परछाइयोंसी जिंदगी ढल जाएगी ........................................................... अरुण

एक अटपटा सा लगता विचार

एक अतर्क्य परन्तु प्रतिकात्मक सत्य-वचन के उच्चार का साहस कर रहा हूँ यह वक्तव्य गहरे चिंतन से फला है जिन्हें अध्यात्मिक प्रक्रिया में रूचि है वे इस पर गौर कर सकते हैं ......... उजाला जान लेता है उजाला अँधेरा खोजता हो पर नही पाता उजाला ... कहने का तात्पर्य यह है की जिनकी दृष्टि सांसारिकता के आकाश से होते हुए अध्यात्म के अवकाश में प्रविष्ट हुई उन्हें ही जीवन दर्शन संभव हो पाता है बाकी लोग सांसारिकता के ही तल पर बैठे बैठे अध्यात्म का अनुमान लगाते दिखते हैं उनकी दृष्टि सांसारिकता में ही स्थिर रहती है भले ही वे लोग बातें ऊँची ऊँची करते हों .... मतलब कि गीता जिस स्थिति की ओर संकेत करती है उस स्थिति में जो पहुँच गये उन्हें ही गीता समझ आती है बाकी सब गीता पढकर अनुमान की भाषा बोलते दिखते हैं ................................ अरुण

जनता से डरे राजनेता

जिस दिन भारत की राजनीति में पार्टी का नेता और उसके कार्यकर्त्ता अपने दिल की बात सार्वजानिक रूप से करने का साहस जुटा लेंगे उसी दिन देश में राजनीति का स्तर सुधरेगा अभी सब डरे हुए दिखते हैं कहीं जनता अपनी बात से नाराज न हो जाए इस बात का डर उन्हें घेरे रहता है इसी लिए ‘ मन में कुछ तो जुबान पे कुछ और ’ जैसे आचरण के सब शिकार दिखते हैं ............. यही बात मीडिया को भी लागू है आम जनता की मूर्खता के बारे में लिखने -कहने का साहस किसी के पास नही इसीतरह जिस दिन चुनाव में नेतागण हार जाने के भय के बावजूद जनता से सीधी सच्ची बात करने लगेंगे वही चुनाव सही चुनाव होगा ......................................... अरुण

जनता से डरे राजनेता

जिस दिन भारत की राजनीति में पार्टी का नेता और उसके कार्यकर्त्ता अपने दिल की बात सार्वजानिक रूप से करने का साहस जुटा लेंगे उसी दिन देश में राजनीति का स्तर सुधरेगा अभी सब डरे हुए दिखते हैं कहीं जनता अपनी बात से नाराज न हो जाए इस बात का डर उन्हें घेरे रहता है इसी लिए ‘ मन में कुछ तो जुबान पे कुछ और ’ जैसे आचरण के सब शिकार दिखते हैं ............. यही बात मीडिया को भी लागू है आम जनता की मूर्खता के बारे में लिखने -कहने का साहस किसी के पास नही इसीतरह जिस दिन चुनाव में नेतागण हार जाने के भय के बावजूद जनता से सीधी सच्ची बात करने लगेंगे वही चुनाव सही चुनाव होगा ......................................... अरुण

भ्रष्टाचार-विरोध – एक अजीबसा उपहास

भ्रष्टाचार यह शब्द व्यापक अर्थ में लिया नही जाता एक सीमित सन्दर्भ में ही इस शब्द को प्रयोग किया जा रहा है ............ अपने दैनिक जीवन में कुरीतियों से भरे एवं सामाजिक अन्याय करने/सहने वाले और सामाजिक एवं राजनैतिक मूल्यों के नाम पर अपनी दुष्ट एवं स्वार्थ भरी मन्शा को पूरी करने वाले लोग भी आर्थिक भ्रष्टाचार के दिखाऊ-विरोध में इकठ्ठा हो कर आन्दोलन का नाटक करते दिखते हैं दरअसल भ्रष्टाचार जीवन की जरूरत बन चुका है श्वांस-श्वांस में भ्रष्टाचार है और हांथो में हैं भ्रष्टाचार-विरोधी तख्तियां, यह है एक अजीबसा उपहास ............................................. अरुण

मजबूर हैं हम, मजबूर हो तुम मजबूर ये दुनिया सारी है

देश के जनता की कमजोरी है कि वह सुशासन और समृद्ध देश का सपना देख रही है, वाह अपने दैनिक जीवन में संतुष्ट नही है और चाहती है कि चूँकि राजनेता तो कुछ कर नही पा रहे सो कोई मसीहा आ जाए संकट का निवारण करने ................ राजनेताओं की कमजोरी है कि उन्हें केवल ‘ राजनीति ’ करने में रूचि है उन्हें जनता का मन जीतना है ताकि सत्ता उनके हाँथ आ जाए जनता का जीवन संतुष्ट रखने में उनकी कोई रूचि नही है इस कारण अब जनता किसी मसीहा की खोज में है ........................... कुछ लोग इस परिदृश्य को देखकर विचलित हैं सो जनता के न्याय के लिए झगडने की भूमिका निभाने का काम करने में जुट गये हैं इस काम से मिलने वाली वाह-वाही से उन्हें समाज में जो ‘ मसीहा ’ का विशेष स्थान मिलता लगता है उसी में उनकी रूचि बढ़ गयी है और यही उनकी कमजोरी है बस किसी की खिलाफत करना उनका धर्म बन गया है अधिकार के लिए झगडना उनका व्यवसाय बन गया है बड़े बड़े आदर्शों का नारा उछालकर वे समाज में प्रतिष्ठा खोजने में लगे हैं, यही उनके अहंकार का विषय है ..............

भारतीय संसद अब रामलीला मैदान में

जनतांत्रिक व्यवस्था के अंतर्गत सभी जन- निर्णय बहुमत के आधार पर लिए जाते है ताकि शासनतंत्र में जनता का सही प्रतिनिधित्व प्रतिबिंबित हो इस व्यवस्था के उपयोग से जनता अपना मत, आग्रह, प्रतिक्रिया, दृष्टिकोण अभिव्यक्त कर उसे लागू कराने का प्रयोजन एवं अधिकार रखती है --------------------- परन्तु यदि बहुसंख्यकों में किन्ही कारणों से असंतुलित एवं विवेकहीन प्रतिक्रिया का दौर प्रबल हो चुका हो तो सारी जनतांत्रिक व्यवस्था अराजकता की दिशा में चल पड़ेगी इस बात की पूरी सम्भावना बनाती है -------------------- देश में फैले भ्रष्टाचार और और उसकी सतत चलती व्यापक चर्चा से त्रस्त हुई जनता को तथाकथित ‘ लोकमान्य ’ सत्याग्रही उच्च-विचारों की बड़ी बड़ी बातें सुनाकर अराजकता की ओर बहकाते दिखते हैं ----------------- देश की संसद अब रामलीला मैदान में शिफ्ट हो चुकी प्रतीत होती है .................................................... अरुण

लोक-संग्रह भी .....

संग्रह से शक्ति हासिल होती है धन संग्रह, सूचना-संग्रह, सुविधा-संग्रह, बल-संग्रह की है तरह लोक-संग्रह भी शक्ति-प्रदर्शन का मोह जगाता है भारत में इस समय इस तरह के शक्ति-प्रदर्शन की कुछ घटनाएँ चर्चा का विषय बन गयी हैं एक या दो व्यक्तियों के अमर्याद- लोक-संग्रह को देखकर सभी राजनैतिक शक्तियां भी डरी हुई दिखती हैं कुछ सामाजिक-सांस्कृतिक संगठन भी इस शक्ति-प्रदर्शन की धारा में अपना एजेंडा पूरा करने की फिराक में हैं ........................................... अरुण

एक शुभेच्छा

भारत के जन जन की प्रतिनिधि- आवाज बनने का साहस, या लोगों के दिलों में सुप्त पड़े विरोध को चौराहों पर एक धधकती आग बनाकर फैलाने का साहस कहाँ से आया ? ........ सफल योग प्रचार-प्रसार और उससे जागी लोकप्रियता के पुरस्कार में रूप में या असंख्य लोगों ने प्रदर्शित किये बिन-शर्त आदर सन्मान का उपयोग करने की लालसा से .... योग के महत्व से आकर्षित लोगों को भी शायद इस बात का अनुमान न होगा कि एक दिन ऐसा आएगा जब वे अपने स्वास्थ्य विषय से हटकर राजनैतिक विषयों के लिए इस्तेमाल किए जाएँगे ऐसा इस्तेमाल देश-हित के काम आए , और एक राजनैतिक छलावा न बने यही एक शुभेच्छा .......................................... अरुण

कल्पना और वास्तविकता

कल्पना ही कल्पना को देखती है गिनती है, उसका विश्लेषण करते हुए नयी कल्पनाएँ रचती है परन्तु वास्तविकता मूक शांत- दर्शक है जिसकी अपनी कोई बुद्धि नही, वह तो प्रबुद्ध है .................................... अरुण