अस्तिव प्रारंभ और अंत के परे

शुरुवात मन की होती है

अंत भी मन का है

अस्तित्व की न तो शुरुवात है

और न ही अंत

इसी लिए अस्तिव की कोई

परिभाषा नही बन बाती

................

मन की छोटी सी भाषा

निर्भाष को अभिव्यक्त करने में

असमर्थ है

अस्तित्व केवल हैपन का

दूसरा नाम है

................................. अरुण

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