टूटन का नाम ही अहंकार

वैसे तो अस्तित्व का

न कोई नाम है और न ही कोई पहचान

उसकी तरफ टुकड़े टुकड़े में देखने वाले ने

उसमे से आकाश को अलग किया,

पृथ्वी को अलग किया

और आकाश और पृथ्वी जैसी

संज्ञायें रच दीं

अच्छा है कि स्वयं आकाश को यह भूल भरा एहसास नहीं

कि वह अस्तित्व में है और कुछ अलग है

नहीं तो सारा अस्तित्व पीड़ा से भर जाता

आदमी इस पीड़ा का शिकार है

(उसकी इस पीड़ा का

अस्तित्व को कोई एहसास नही )

अपने को अलग समझता है

अस्तित्व से टूटन के कारण ही उसमें

अहंकार का भ्रम

वास्तव से भी गहरा बनकर

जी रहा है

सांसारिक जीवन के लिए टूटन या अहंकार

जरूरी होने के कारण है

उत्क्रांति ने उसमें

इस अहंकार का भ्रम-वास्तव जगाया

और साथ ही

भ्रम के पीछे आने वाली पीड़ा भी

................................................... अरुण

Comments

Popular posts from this blog

मै तो तनहा ही रहा ...

यूँ ही बाँहों में सम्हालो के