Posts

Showing posts from March, 2011

परछाई से काटते परछाई को यार तू कैसे हो पायगा अहंकार पर स्वार

परछाई से परछाई को काटा नही जा सकता अहंकार भी अहंंकर को समाप्त नही कर सकता जो लोग यह संकल्प या विचार करतें हैं कि वे अहंकार पर नियंत्रण कर लेंगे उनका यह संकल्प भी अहंकार की ही उपज है अहंकार और उसके बल पर पैदा होने वाली हर विचार चेतना जब तक शुध्द चेतना के ध्यान में नही उतरती अहंकार से अनुपस्थित नही हो सकती ................................................. अरुण

कल फूटे थे भाग या........

जिसने यह देख लिया कि काल का कोई विभाजन ही नहीं है , न भूत है और न ही भविष्य ---- ऐसी दृष्टि, भविष्य कथन या ज्योतिष्य जैसे विषयों के औचित्य को, कैसे स्वीकारे चार महिने पहले घटी दुर्घटना का पता आज लगा और मै दुखी हो गया ज्योतिष्य किस दिन को बुरा दिन कहे दुर्घटना घटी उस दिन को या जिस दिन दुर्घटना का ज्ञान हुआ उस दिन को जिसे ऐसी दुर्घटना का पता ही नहीं चलता या जो दुर्घटनाओं या सुघटनाओं के प्रभाव से मुक्त हैं, ऐसे लोगों को ज्योतिष्य का क्या औचित्य कटी जेब थी कल मगर, गया आज मै जान कल फूटे थे भाग या हुआ आज जब ज्ञान ........................................................................ अरुण

टूटन का नाम ही अहंकार

वैसे तो अस्तित्व का न कोई नाम है और न ही कोई पहचान उसकी तरफ टुकड़े टुकड़े में देखने वाले ने उसमे से आकाश को अलग किया, पृथ्वी को अलग किया और आकाश और पृथ्वी जैसी संज्ञायें रच दीं अच्छा है कि स्वयं आकाश को यह भूल भरा एहसास नहीं कि वह अस्तित्व में है और कुछ अलग है नहीं तो सारा अस्तित्व पीड़ा से भर जाता आदमी इस पीड़ा का शिकार है (उसकी इस पीड़ा का अस्तित्व को कोई एहसास नही ) अपने को अलग समझता है अस्तित्व से टूटन के कारण ही उसमें अहंकार का भ्रम वास्तव से भी गहरा बनकर जी रहा है सांसारिक जीवन के लिए टूटन या अहंकार जरूरी होने के कारण है उत्क्रांति ने उसमें इस अहंकार का भ्रम-वास्तव जगाया और साथ ही भ्रम के पीछे आने वाली पीड़ा भी ................................................... अरुण

केवल होने का नाम है ईश्वर या अस्तित्व

न्याय अन्याय की बातें ईश्वर पर लादी नही जा सकती ईश्वर न तो इंसान के भले बुरे के लिए है और न ही कैंसर रोग के कारणों को जन्माने या नष्ट करने के लिए फिर भी कैंसर रोग से त्रस्त आदमी ईश्वर की शिकायत करता बैठता है या उससे अपनी रोग मुक्ति की प्रार्थना करने लगता है ईश्वर या अस्तित्व अपने आप में केवल होता रहता है उसके इस होने से यदि किसी को कैंसर पकड़ ले तो उसे ईश्वर या अस्तित्व क्या करे वैसे ही यदि कैंसर को उस आदमी का शरीर छोड़ना पड़े तो कैंसर को भी ईश्वर से कोई शिकायत नही रहनी चाहिए .................................................................. अरुण

भगवान न्याय या अन्याय नही करता

भगवान न्याय या अन्याय नही करता वह जो भी करता है वह अस्तित्व का स्वभाव मात्र है न्याय अन्याय की बातें मनुष्य समाज के चिंतन का विषय है इसीलिए प्रायः अरुणा शानबाग को दया मृत्यु ‘ दें या नही ’ - इसबारे में भारतीय न्यायलय पशोपेश में है - मनुष्य दया मृत्यु की वैधता का गलत इस्तेमाल कर सकता है - यह चिंता न्यायलय को घेरे हुए है पुलिस की गोली चल पड़े तो सामने आए किसी को भी मार देती है चाहे वह टेररिस्ट हो या निर्दोष नागरिक मकान की छत के नीचे अच्छे भी मरते हैं और बुरे भी अस्तित्व का नियम अच्छा बुरा नही सोचता वैसे तो वह कुछ सोचता ही नही बस घटता जाता है .............................................. अरुण

केवल एक ही प्रक्रिया- आभास कई

जानने की प्रक्रिया के भीतर ही ‘जाननेवाला’ और ‘जाना गया’ दोनों का अस्तित्व आभासित होता है जैसे ‘तुम’ का विचार करो तो ‘मै’ और ‘मै’ के बारे में सोचो तो ‘तुम’ की सोच उभरनी अवश्यंभावी है मस्तिष्क में एक ही क्रिया होती है जानने की परन्तु आभासरूप में कई पात्र सजीव हुए जान पड़ते हैं ऐसे ही आभासों से मुक्त होने की कोशिश आदमी सदियों से करता आया है परन्तु कोई बिरले बुद्ध ही ऐसा कर पाए ............................................................ अरुण