संकट तो है पर संकट, संकट नही लगता

अपने कमरे में शांत बैठे व्यक्ति का ध्यान

कमरे के किसी कोने पर जाते ही अगर

उसे आग लगी दिखाई देती है तो

ऐसे में यही स्वाभाविक है कि

वह तत्काल आग बुझाने के काम में

सक्रीय होता हुआ

पूरा का पूरा ध्यान उस संकट से उबरने में लगा दे

वह ऐसा न सोचेगा कि

चलो

संकट की इस स्थिति से

निपटने के उपायों का अध्ययन करें

किसी गुरु का आश्रय ले लें

इस सम्बन्ध के किसी धर्म से जुड जाएँ

और इसतरह परिवर्तन और सुधार के माध्यम से

इस परिस्थिति को बदल दें

मनुष्य को अपनी मूल गहरी भ्रांतियां दिख तो रही हैं

पर उसे यह बात आग लगने जैसी गंभीर

नही लग रही और

इसीलिए

सदियों से आदमी सुधार का

के मार्ग अपनाए हुए है और

उसकी भ्रांतियां भी

उसके आचरण में बरकरार हैं

............................................ अरुण

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